डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी. Dr. Sarvpalli Radhakrishnan biography.
स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति तथा दूसरे राष्ट्रपति ( 1962 – 67 तक ), भारत रत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडू के तिरुमनी में एक गरीब ब्राह्मण के घर हुआ था, इनके पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी था वह एक विद्वान् ब्राह्मण थे, इनकी माता जी का नाम सिताम्मा था जो एक कुशल गृहणी थी, डॉ साहब का जीवन बहुत ही आभाव में ब्यतीत हुआ, गरीब परिवार से होने के कारण इनको ज्यादा सुख सुविधा नहीं मिल पायी थी.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की शिक्षा. ( Dr. Sarvepalli RadhaKrishnan Education. ) ?
डॉ साहब की प्रारंभिक शिक्षा तिरुमनी गाँव से पूरी हुई, वह शुरू से ही पढाई-लिखाई में रूचि रखते थे, उन्होंने अपने जीवन के शुरुवाती दिनों में ही धार्मिक पुस्तकों को बहुत ही अच्छे तरीके से पढ़ लिया था, यद्यपि उनके पिता जी ब्राह्मण थे और पुराने विचारों को अधिक मानते थे, फिर भी उन्होंने डॉ साहब को पढने के लिए ( 1896 ) तिरुपति के लूथर्न मिशन स्कूल में उनका दाखिला करा दिया, जहाँ उन्होंने सन 1900 तक शिक्षा ग्रहण किया.
आगे की पढाई उन्होंने वेल्लूर में जहाँ से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास किया. जिसके लिए इन्हें आगे की पढाई के लिए छात्रवृति मिलती रही, आगे की पढाई के लिए मद्रास क्रिश्चियन कालेज मद्रास में दाखिला ले लिया. सन 1906 में इन्होने दर्शनशास्त्र से स्नातक की डिग्री और 1908 में दर्शनशास्त्र से ही परास्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को सर्वपल्ली उपाधि कैसी मिली.
सर्वपल्ली की उपाधि इनको इनके पूर्वजों के द्वारा मिली, तिरुनमी में बसने से पहले इनके पूर्वज ‘सर्वपल्ली’ नामक गाँव में रहते थे. वे लोग जब वहां से तिरुनमी में रहने के लिए चले आये तो, उन्होंने अपने गाँव की याद को हमेशा जिन्दा रखने के लिए अपने नाम के आगे सर्वपल्ली लगाना शुरू कर दिया. मशहूर क्रिकेटर V.V.S. लक्ष्मण भी इनके ही खानदान से आते है.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का वैवाहिक जीवन. ( RadhaKrishnan Marriage Life ) ?
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के पिता श्री सर्वपल्ली वीरास्वामी एक पुराने ख्याल के व्यक्ति थे, और इनके कुल-खानदान में कम वर्ष की अवस्था में ही विवाह करने का प्रचालन था. इस प्रचालन से डॉ साहब भी नही बच पाए थे, जब इनकी अवस्था मात्र 16 वर्ष की थी यानी की 1903 में इनका विवाह दूर की चचेरी बहन सिवाकामू से कर दिया गया.
जिस समय इनका विवाह हुआ था उस समय इनकी पत्नी की उम्र मात्र 10 वर्ष थी. 3 वर्ष बाद इनकी पत्नी इनके साथ रहने लगी और अपना गृहस्थ जीवन चलाने लगीं, इनकी पत्नी ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, लेकिन तेलगू भाषा पर उनका बहुत ही अच्छा पकड़ था. राधाकृष्णन और सिवाकामू की कुल 6 संतान थी जिसमे सबसे बड़ा इनका बेटा सर्वपल्ली गोपाल ( प्रसिद्ध इतिहासकार ) जिनका जन्म सन 1908 में हुआ था. वर्ष 1956 में इनकी पत्नी सिवाकामु का निधन हो गया था.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का एक शिक्षक के रूप में जीवन.
वर्ष 1909 में डॉ राधाकृष्णन ने मद्रास प्रेसिडेंसी में दर्शनशास्त्र के अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे और 7 वर्ष तक पढ़ाते रहे, सन 1916 में इन्हें मद्रास रेजीडेंसी कालेज में सहायक प्रधानाध्यापक का कार्यभार सौपा गया जिसका इन्होने लगभग 2 वर्ष तक बहुत निष्ठा से निर्वहन किया.
सन 1918 में इन्होने मैसूर यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर बन गए और उसके बाद उन्हें इंग्लैण्ड के ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में वर्ष 1936 – 1952 तक भारतीय दर्शनशास्त्र के शिक्षक बन गए. और फिर मद्रास क्रिस्चियन कालेज में इन्हें उपकुलपति का दर्जा दिया गया, जहाँ इन्होने कुछ समय अपनी सेवा देने के बाद उसको छोड़ दिया और 1939 – 48 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति बन रहे. सन 1953 – 62 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के चांसलर पद पर रहे.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीति में आगमन.
जब देश आजाद हुआ तब भारत के पहले प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु ने उनसे यह आग्रह किया की वो सोवियत संघ में भारत के विशिष्ट राजदूत के रूप में कार्य करें, उन्होंने सन 1947 से लेकर 1949 तक भारत के संविधान के निर्माण में भी अपना विशिष्ट योगदान दिया.
26 जनवरी 1950 को जब भारत पूरी तरह से आज़ाद हो गया और एक लोकतान्त्रिक देश बन गया तब सभी के सम्पूर्ण सहमती से डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को भारत का प्रथम उपराष्ट्रपति 13 मई 1952 को बनाया गया, जहाँ इन्होने 13 मई 1962 तक अपने दायित्वा का बहुत अच्छी तरह से निर्वहन किया.
13 मई 1962 को जी इन्हें भारत का दूसरा राष्ट्रपति होने का गौरव प्राप्त हुआ, लेकिन इनके इस कार्य में बहुत ढेर सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, इनके इस कार्यकाल में भारत को चीन और पाकिस्तान से लड़ाई का सामना करना पड़ा जहाँ इन्होने बहुत ही बहादुरी से अपने दायित्व का निर्वहन किया, इनके कार्यकाल में ही दो प्रधानमंत्रियों निधन ( जवाहर लाल नेहरु, और लाल बहादुर शास्त्री ) हो गया. 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी तब भी सभी लोग इनको उपराष्ट्रपति बनाना चाहते थे, लेकिन इन्होने फिर से पदभार लेने से मना कर दिया.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को प्राप्त पुरष्कार.
उनके जन्मदिवस 5 सितम्बर शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की घोषणा. ( 1962 से ). |
भारत रत्न ( 1954 ). |
पोप जॉन पाल ने इनको “गोल्डन स्पर” भेट किया गया. |
अमेरिका द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार मिला. ( 1975 में मरणोपरांत ). |
ब्रिटिश एकेडमी का सदस्य बनाया गया ( 1962 ). |
आर्डर ऑफ़ मेरिट का सम्मान इंग्लैण्ड सरकार द्वारा. ( 1963 ) |
मेक्सिको के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार Order of the Aztec Eagle.( 1954 ). |
1989 ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा रशाकृष्णन की याद में “डॉ. राधाकृष्णन शिष्यवृत्ति संस्था” की स्थापना। |
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी की पुस्तके.
फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर. | ब्रम्ह्सुत्र. |
भगवतगीता. | “द हिन्दू व्यू ऑफ़ लाइफ.” |
द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी. | इंडियन फिलासफी. |
‘द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर.” | रिलीजन एंड सोसाइटी. |
द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी. | रिकवरी ऑफ़ फेथ. |
द एथिक्स ऑफ़ वेदांत. | ‘द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर’. |
इत्यादि उनकी बहुत सी पुस्तके है, जिनसे हमें भारत दर्शन और भारत के बारे में उनके नजरिये को अच्छी तरह से जान सकते है.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के विचार.
- आध्यात्मिक जीवन भारत की प्रतिभा है.
- धर्म का डर पर जीता है और निराशा और मौत का विनाशक है.
- पवित्र आत्मा वाले लोग इतिहास के बाहर खड़े होकर भी इतिहास रच देते है.
- जीवन को एक बुराई के रूप में देखना और दुनिया को एक भ्रम मानना तुच्छ सोच है.
- किताबे ही वह माध्यम है जिनके द्वारा हम दो संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते है.
- सच्चा ज्ञान वही है जो आपके अंदर के अज्ञान को समाप्त कर सके.
- जीवन का सबसे बड़ा उपहार एक उच्च जीवन का सपना है.
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु.
‘भारत रत्न’ डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु 17 अप्रैल 1975 को लम्बी बीमारी से लड़ते-लड़ते हो गयी. एक निर्धन परिवार में जन्म लेने के बाद भी उन्होंने अपने जीवन में जो उचाई प्राप्त की वो बस शिक्षा के माध्यम से ही संभव हो सकती है, उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया, और हमेशा कुछ नया पढते और सीखते रहे.
वे बचपन से ही स्वामी विवेकानंद और वीर सावरकर के जीवन से प्रेरित थे और उनको पढ़ते रहते थे. उन्होंने भले ही अपनी शिक्षा क्रिस्चियन स्कूल से प्राप्त की हो लेकिन कभी भी अपने धर्म के खिलाफ नहीं गए. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन उस सूर्य की भाति है जो स्वयं तपकर सभी को उजाला प्रदान करता है.
शिक्षक दिवस. ( Teacher’s Day )
अगर सही मायने में कोई पुरस्कार डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को मिला है तो वो है उनके जन्म दिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने के लिए. वर्ष 1962 में जब वो राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ छात्रों ने उनके जन्मदिन को भव्य तरीके से मनाने की अनुमति मांगी, इस पर राधाकृष्णन जी ने कहा की अगर आपको मेरा जन्मदिन मनाना ही है तो आज के दिन सभी सभी शिक्षको के सम्मान में शिक्षक दिवस आयोजित करें.
तभी से उनके जन्मदिवस पर शिक्षक दिवस मनाने की शुरुवात की गयी, इस दिन भारत सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए शिक्षको का सम्मान किया जाता है, शिक्षक ही ऐसा होता है जो अपने विद्यार्थियों को अपने से आगे जाकर बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त होता है. डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी कहते थे की पूरी दुनिया एक विद्यालय है जहाँ हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है. और शिक्षक ही ऐसा है जो छात्रों के अर्थहीन जीवन को मूल्यवान बनाकर उन्हें जीवन में सही और गलत के बीच में फैसला करने का साहस प्रदान करता है.
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