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नरेन्द्र मोदी के जन्मदिवस पर विशेष | Narendra Modi Janmdivas Par Vishesh

नरेन्द्र मोदी के जन्मदिवस पर विशेष | Narendra Modi Ke Janmdivas Par Vishesh.

नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ( Narendra Modi ) 17 सितम्बर 1950 को गुजरात के वडनगर के एक पिछड़ा वर्ग (तेली) समुदाय के साधारण गुजराती परिवार में जन्मे इस व्यक्ति का जीवन काफी रोचक रहा जिसने बचपन में अपने पिता ( दामोदर दास मूलचंद मोदी ) के साथ चाय बेचने और पिता के कामों में हाथ बटाने का काम किया. इस साधारण से लड़के को देखकर किसने सोचा था की ये लड़का एक दिन भारत का सबसे शक्तिशाली और पूरे विश्व का सबसे लोकप्रिय प्रधानमन्त्री बनेगा, विद्यार्थी जीवन में एक औसत दर्जे का छात्र होते हुए भी राजनैतिक सोच-समझ में बहुत आगे रहने वाला यह व्यक्ति हमेशा अपनी कूटनीतियों और दूरदर्शिता के कारण लगातार दूसरी बार प्रधानमन्त्री बना. आज उनके जन्मदिवस पर हम उनके जीवन से जुडी कुछ विशेष बातों के बारे में जानेंगे.

चाय बेचने से लेकर आरएसएस का प्राचारक बनने का रोचक सफ़र.

नरेन्द्र मोदी जब आठ वर्ष के थे तभी से उन्होंने संघ की शाखा में जाना शुरू कर दिया था यानी की 1958-59 से ही उनका संघ के प्रति लगाव हो चुका था और वे संघ के एक सक्रीय कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू कर दिया था और वर्ष 1967 में उन्होंने घर-परिवार और अपनी पत्नी को को छोड़कर पूर्ण-रूप से संघ के लिए समर्पित हो गए.

नीलांजना मुखोपाध्याय ने अपनी किताब ‘एनाटॉमी ऑफ़ नरेन्द्र मोदी-द मैंन एंड हिज पॉलिटिक्स’ में लिखा है की संघ के शुरुवाती दौर में भी उन्हें संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के लिए चाय-नाश्ते बनाने का काम मिला लेकिन उनकी मेहनत ने उन्हें उनके हर मनचाहे मुकाम पर ले गयी. वह संघ के उन दो प्राच्रको में से एक थे जिन्होंने बाद में पूरी तरह से भाजपा के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था.

मोदी ( Narendra Modi ) का राजनैतिक जीवन.

आरएसएस के द्वारा ही नरेंद्र मोदी का परिचय भाजपा से हुआ वर्ष 1980 में वे भाजपा के इकाई में शामिल हो गए और उसके लिए कार्य करने लगे और वर्ष 1988-89 में उन्हें गुजरात भाजपा इकाई का महासचिव बनाया गया जिसके फलस्वरूप उन्होंने 1995 के विधानसभा चुनाव में अपने-बलबूते पर भाजपा को दो-तिहाई बहुमत दिलवा कर भाजपा की सरकार बना दी. इसी बीच उन्हें लालकृष्ण आडवाणी के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा में आडवाणी के प्रमुख सारथि के रूप में इन्हें नियुक्त किया गया तथा मनोहर जोशी के काश्मीर से कन्याकुमारी तक की रथ यात्रा के संचालन का जिम्मा भी इन्हें सौपा गया जिसका निर्वहन इन्होने बखूबी किया.

इसके बाद इन्होने भाजपा में कई तरह के मंत्रिपद का निर्वहन किया  और 1998 में उन्हें केन्द्रीय मंत्री से पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामंत्री का जिम्मा सौपा गया जिस पद का निर्वहन इन्होने वर्ष 2001 तक किया. वर्ष 2001 में ही जब भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की तबियत न सही रहने और चुनाव में 4-5 सीटे हारने के कारण भाजपा को उनकी जगह नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को प्रथम बार गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किया गया उसके बाद वो लागातार 4 बार गुजरात के मुख्यमंत्री और लगातार 2 बार भारत के प्रधानमन्त्री पद पर नियुक्त हुए.

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मोदी के जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें.

यूँ तो हम सभी इनके जीवन के बारे में बहुत कुछ जानते है लेकिन इनके जीवन की कुछ ऐसी बातें है जिन्हें बहुत कम लोग जानते है तो आइये जानते है नरेन्द्र मोदी ( Narendra Modi ) के जीवन से जुडी कुछ रोचक बातें.

जब सर्दी में बाहर सोये.

जब मोदी जी आरएसएस में प्रचारक का जीवन जी रहे थे तो वो अक्सर महेश दीक्षित ( संघ के कार्यकर्ता ) के घर अक्सर आते जाते रहते थे, एक बार कुछ ऐसा हुआ की ए देर से दीक्षित जी के घर पहुंचे और तब उनके घर पर सब लोग सो चुके थे, इन्होने बिना किसी को जगाये बाहर पोर्च में पड़े एक लकड़ी के बोर्ड पर सो गए, सुबह जब दीक्षित जी जगे और बाहर निकले तो इनको बोर्ड पर सोते देखा तो बहुत आश्चर्यचकित हुए और इनसे पूछा की आपने ऐसा क्यों किया तो इन्होने बताया की ए अपनी बहन (दीक्षित जी की पत्नी ) को तकलीफ नहीं देना चाहते थे, वे नहीं चाहते थे की उनकी बहन उनके लिए रात में परेशान हो उनके खाने और सोने को लेकर.

सेना के लिए घर-घर चाय मंगवाई.

1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया था, उस समय मोदी जी की उम्र 21 साल थी, अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से आर्मी जा रही थी जहाँ पर आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने तय किया की उन जवानो को गरमा-गर्म चाय पिलाई जाय, लेकिन मोदी जी बोले सभी शहरवासियों से बोलिए की सब अपने घर से एक थर्मस में 5-10 कप चाय लेकर आयें इससे सेना का मनोबल भी बढेगा और लोगों में देशप्रेम की भावना भी जागेगी.

देश के लिए अपने परिवार को छोड़ा.

नरेंद्र दामोदर दास मोदी ( Narendra Modi ) जब 17 वर्ष के थे तभी उन्होंने देश की सेवा के लिए अपना घर-परिवार छोड़ दिया था, उन्होंने अपनी शादी के मात्र 4 वर्ष बाद ही अपनी पत्नी को छोड़ दिया था, उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन भारत माँ के नाम कर दिया और उसके लिए संघर्ष कर रहे है उन्होंने देश की जनता को अपना परिवार माना और उस परिवार की रक्षा के लिए हमेशा खड़े रहे.

गुजरात के एक साधारण से परिवार में जन्मा वह बच्चा सेना जाना चाहता था और देश की सेवा करना चाहता था, लेकिन मानस में एक दोहा है “होईहै वही जो राम रचि राखा” इस बच्चे ने अपने मेहनत और काबिलिओयत के बलबूते एक ऐसा मुकाम हासिल कर लिया जो आज के सभी नौजवानों के लिए प्रेरणा श्रोत है. हमें अपने भाग्य को कोसने की बजाय मेहनत करनी चाहिए जिससे हम अपने जीवन में कुछ ऐसा हासिल कर लें जिसे लोग एक मिसाल समझकर उसका अनुशरण करें.

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