भगवान परशुराम

परशुराम भगवान जयंती विशेष | Parashuram Jayanti special.

परशुराम भगवान जयंती विशेष | Parashuram Jayanti special.

परशुराम भगवान विष्णु के छठवे अवतार है इनका जन्म त्रेता युग में महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जम्दागिनी और माता रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ था. भगवान परशुराम का मूल नाम राम ही था लेकिन भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण और उनके द्वारा दिए गए फरसे को हमेशा धारण करने की वजह से उनका नाम परशुराम हो गया परशुरामजी की जयंती वैशाख मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस पावन दिन को अक्षय तृतीया कहा जाता है और माना जाता है कि इस दिन किया गया दान-पुण्य कभी क्षय नहीं होता.

भगवान परशुराम अत्यधिक क्रोधी स्वाभाव के होने के कारण एक बार अपने पिता की आज्ञा पर अपने माँ की तरफ फरसा लेकर इनका वध करने चल पड़ें थे, बाद में इनके पिता के रोकने पर ही यह रुके, वह मात-पितु भक्त थे. और उनकी आज्ञा पर वह कुछ भी करने को तैयार रहते थे, यद्यपि वो ब्राह्मण कुल में जन्मे थे लेकिन वो कर्म से क्षत्रिय थे. इनके जैसा शस्त्र और शास्त्र का ज्ञाता न कोई हुआ और न कोई होगा.

भगवान परशुराम मन्त्र साधना और फल 

नीचे भगवान परशुराम जी का एक मन्त्र दिया गया है, जिसका जाप करने से आपके सारे कष्ट दूर हो जायेंगे, इस मन्त्र का निशदिन जाप करने से आपको अच्छे फल की प्राप्ति जरुर होगी.

ॐ ब्रह्मक्षत्राय विद्महे क्षत्रियान्ताय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।। ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।

ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नम:।

इस मन्त्र का जप करने और ध्यान करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है, प्रत्येक व्यक्ति को इसका जाप दिन में एक बार अवस्य करना चाहिए. हिन्दू धर्म शास्त्रों में 8 लोगों को अमर माना गया है जिनका विवरण इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है.

अश्वत्थामा बलिव्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित

अर्थात अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि, इनका रोज सुबह जाप करना चाहिए। इनके जाप से भक्त को निरोगी शरीर और लंबी आयु मिलती है.

भगवान परशुराम जी की आरती 

अगर कोई व्यक्ति निशदिन परशुराम जी की  पूजा-अर्चना करता है और उनकी आरती करता है, तो निश्चय ही अच्छे फल की प्राप्ति होगी.

ओउम जय परशुधारी, स्वामी जय परशुधारी।
सुर नर मुनिजन सेवत, श्रीपति अवतारी।। ओउम जय।।

जमदग्नी सुत नरसिंह, मां रेणुका जाया।
मार्तण्ड भृगु वंशज, त्रिभुवन यश छाया।। ओउम जय।।

कांधे सूत्र जनेऊ, गल रुद्राक्ष माला।
चरण खड़ाऊँ शोभे, तिलक त्रिपुण्ड भाला।। ओउम जय।।

ताम्र श्याम घन केशा, शीश जटा बांधी।
सुजन हेतु ऋतु मधुमय, दुष्ट दलन आंधी।। ओउम जय।।

मुख रवि तेज विराजत, रक्त वर्ण नैना।
दीन-हीन गो विप्रन, रक्षक दिन रैना।। ओउम जय।।

कर शोभित बर परशु, निगमागम ज्ञाता।
कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ओउम जय।।

माता पिता तुम स्वामी, मीत सखा मेरे।
मेरी बिरत संभारो, द्वार पड़ा मैं तेरे।। ओउम जय।।

अजर-अमर श्री परशुराम की, आरती जो गावे।
पूर्णेन्दु शिव साखि, सुख सम्पति पावे।। ओउम जय।।

 

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