पेट्रोल, डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल) कैसे बनता है ? और यह इतना महंगा क्यों होता है ?
पेट्रोल,डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल) के उत्पादन हमारे देश भारत में न के बराबर होता है, और इसकी खपत बहुत ज्यादा है इसीलिए तमाम पेट्रोलियम उत्पादक देशों के लिए भारत एक बहुत बड़ा बाजार है जहाँ मार्च 2021 में पेट्रोल की खपत 88,380 टन रोजाना की खपत हो रही है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 27% अधिक है. और यहाँ पर इसकी महंगाई रिकार्ड स्तर को छू चुकी है ऐसा इसलिए की
आज हम एक ऐसे युग में रह रहें है जहाँ पर हमारी हर जरूरतों के लिए पेट्रोल, डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल) की जरुरत पड़ती है. हम उठने से लेकर सोने तक में इनका उपयोग करते है, हमारी लगभग सारी जरूरतें इन्ही के माध्यम से पूरी होती है, कहीं घुमने जाना है तो हमें गाडी में पेट्रोल या डीजल की जरुरत पड़ती है,खाना पकाने और सिंचाई के लिए हमें पेट्रोल, डीजल और केरोसिन का उपयोग करते है. इनका उपयोग तो सभी लोग करते है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता है की इसको बनाया कैसे जाता है, गर आपको भी नही पता है तो चिंता मत करिए आज हम आपको इसी विषय के बारें में विस्तार से बताएँगे.
पेट्रोल, डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल) कहाँ मिलता है ?
इन तेलों को निकालने के लिए दो रास्ते है पहला जमीन पर कुंवा बनाकर और दूसरा समुन्द्र में बोर ( पाइप गाड़कर ) करके मिलता है, लेकिन ये जमीन के अन्दर बनता कैसे है पहले वो समझते है. ये तो सभी जानते है की पृथ्वी पर हजारों सालों से जीव-जन्तुओ का निवास रहा है और ये भी सब जानते है की भयंकर प्रलय और भीषण आपदा के कारण सारे जीव-जंतु और पेड़ पौधे सब कुछ जमीन के अन्दर दब गए और हजारों सालों तक वही पर पड़े रहें और पृथ्वी की आंतरिक गर्मीं और ऊष्मा से सब पिघलकर तरल के रूप में परिवर्तित हो गए.
जैसे-जैसे हमारी सभ्यता विकसित होती गयी और तमाम शोध और खोज करके वैज्ञानिकों ने तरल सोना निकाला जिसे हम पेट्रोलियम के रूप में जानते है, अब ऐसा भी नहीं है की इन पेट्रोलियमो को डायरेक्ट जमीन से निकालकर डायरेक्ट पेट्रोल्पम्प पर पहुंचा दिया जाता है, इसके लिए कंपनियों को अरबों-खरबों रुपये लगाकर उन्हें पेट्रोल, डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल) के रूप में परिवर्तित किया जाता है.
पेट्रोल, डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल) कैसे बनता है ?
इन तेलों को निकालने के लिए दो रास्ते है पहला जमीन पर कुंवा बनाकर और दूसरा समुन्द्र में बोर ( पाइप गाड़कर ) करके मिलता है, पहले कम्पनियाँ उस जगह को चिन्हित करती है जहाँ पर यह पेट्रोलियम मिलता है अगर वह जमीन पर है तो वहां पर बड़े-बड़े कुंवा खोदे जाते है, फिर उसमे मशीनों के द्वारा उस पेट्रोलियम को ऊपर लाया जाता है.
अगर पेट्रोलियम की जगह समुन्द्र में चिन्हित होती है तो वहां पर मुश्किलें और भी बढ़ जाती है, जैसे की वहां पर बड़ी-बड़ी मशीनों को ले जाकर उस एरिया को चिन्हित करना और फिर उस मशीन को वहां पर फिट करना और फिर जमीन के अन्दर हजारों फिट तक बोर ( जैसे नल लगाया जाता है ) करना फिर वहां से तेल को निकालकर बड़े-बड़े जहाजों के माध्यम से उसे फैक्ट्री तक लाना.
जो तेल जमीन से निकाला जाता है वह काला और गाढे तरल के रूप में होता है, जिसमे मोम, डीजल, केरोसिन, पेट्रोल इत्यादि के रूप में मिले होते है, जिसको फैक्ट्री में लाकर रिफाइन किया जाता है और उन्हें बड़े-बड़े बेलनाकार बर्तनों में डालकर गर्म किया जाता है पेट्रोल प्राप्त करने के लिए उस तरल को 110 डिग्री सेंटीग्रेड पर, डीजल 260 और केरोसिन को 180 पर गर्म किया जाता है, तब जाकर यह हमें शुद्ध रूप में मिल पाता है, और हमारी गाडी में चलने के लायक बनता है साथ ही इसमें यह भी देखा जाता है की कितने ओकटाइन का इंधन हमें मिला है, यह जितना अधिक होगा उतना ही अच्छा होगा. इस तरल से हमें मोम, डामर, ग्लिसरीन इत्यादि भी प्राप्त होती है.
भारत में पेट्रोल कहाँ पाया जाता है ? और भारत में यह इतना महंगा क्यों बिकता है ?
बहुत से लोग यह सोचते है की पेट्रोल भारत में कहाँ पाया जाता है, तो हम आपको बता दें की स्वतंत्रता प्राप्ति तक भारत में पेट्रोलियम सिर्फ असम में मिलता था, उसके बाद गुजरात, और बाम्बे में भी इसके खनन की प्रक्रिया की गयी, मौजूदा समय में कुल 26 बेसिनो में तेल के श्रोत मिलें है. तो कुलमिलाकर हम यह कह सकते है की भारत में इसका उत्पादन लगभग न के बराबर होता है.
भारत में इसका महंगा होने का प्रमुख कारण है की भारत इसे दूसरे देशों जैसे – रूस, अमेरिका, ब्राजील इत्यादि देशों से आयात करता है जिससे इसपर बहुत ज्यादा खर्चा बढ़ जाता है, और भारत पहुँच कर पेट्रोल पंप तक पहुचने में भारत सरकार इस पर बहुत सारे टैक्स लगा देती है, जिससे इसके दाम बढ़ जाते है. कच्चे तेल की कीमत हमेशा घटती-बढती रहती है यह भी इसके महंगा होने का एक प्रमुख कारण है.
क्या पेट्रोल, डीजल और केरोसिन (मिट्टी तेल ) को रिसायकल किया जा सकता है ?
यह तो हम सभी जानते है की पेट्रोलियम पदार्थों के एक बार उपयोग करने के बाद इसको रिसायकल नहीं किया जा सकता है, और ऐसा भी नही है की यह पेट्रोलियम पदार्थ हमारे पास इतना है की जो कभी खत्म ही नही होगा, जिस तरह से हम इसको कंज्यूम कर रहे है आने वाले 5 से 6 दशको के बाद यह समाप्त हो जायेगी, इसीलिए आज टेस्ला जैसी कंपनिया आज से ही इलेक्ट्रिक वाहन को इस्तेमाल करने के लिए उनका निर्माण कर रही है, जिससे हमें भविष्य में पेट्रो पदार्थ के खत्म होने के बाद भी हमारे जीवन पर इसका कोई असर न पड़े.
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