मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर तक का रोचक सफ़र
हेल्लो दोस्तों स्वागत है आप सभी का आज हम एक ऐसे व्यक्ति की बात कर रहे है जिसने अपनी रातें फूटपाथ पर काटी है, जिसकी शादी सिर्फ इसलिए टूट जाती है क्योकि वह अपने जीवन में सिर्फ लिखना चाहता था, जिसके पिता उससे नाराज हो जाते है और जिसकी आधी उम्र मुंबई में धक्के खाते गुजर जाती है.
अब तक आप लोग समझ ही चुके होंगे की हम किसकी बात कर रहे है, जी हां हम मशहूर और विख्यात लेखक, वक्ता, कवि, और ल्यरिसिस्ट मनोज शुक्ला उर्फ़ मनोज ‘मुन्तशिर’ की बात कर रहे है. आइये हम इनके जीवन को और विस्तार से जानते है और समझते है की किसी को कोई मुकाम सिर्फ यूँ ही नही हासिल हो जाता.
मैं अपनी गलियों से बिछड़ा मुझे ये रंज रहता है,
मेरे दिल में मेरे बचपन का गौरी गंज रहता है.
भारतीय हिंदी सिनेमा के मशहूर गीतकार,संवाद और पटकथा लेखक मनोज मुन्तशिर का जन्म उत्तर-प्रदेश के अमेठी जिले के गौरीगंज में 27 फरवरी 1976 को एक पंडित परिवार में हुआ. मनोज को बचपन से ही लिखने का शौक था और इन्होने सातवी कक्षा तक ही तमाम शायरों और लेखको पढ़ चुके थे. उर्दू पढने में दिक्कत होने के चलते उन्होंने उर्दू की किताब लेकर उसको पढ़ा और अपनी लेखनी जारी रखी.
मनोज शुक्ला से मनोज मनोज मुंतशिर बनने की वजह.
मनोज जी बताते है की सन 1997 की बात है उस सर्दियों के मौसम में एक रात उन्हें चाय पीने की इच्छा हुई और वह चाय की तलास में एक टपरी ( चाय की दूकान ) पर पहुचे और चाय पीने लगें, वहां पर ही उन्होंने रेडियों पर मुन्तशिर शब्द सुना और चाय खत्म होते-होते उन्होंने अपने नाम के आगे मुन्तशिर लगाने का निश्चय कर लिया, और घर आकर अगली सुबह घर के नेम-प्लेट पर मनोज शुक्ला की जगह मनोज मुंतशिर लिखवा दिया.
शुक्ला की जगह मुंतशिर लिखा देखकर इनके पिताजी काफी नाराज हो गए और कहने लगे की उनके बेटे ने धर्म परिवर्तन कर लिया है जिससे काफी दिनों तक उनके घर में कोहराम मचा हुआ था.
मेरी रातें फूटपाथ पर गुजरती थीं.
मनोज मुंतशिर ने अपने एक इंटरव्यू में बताया की स्नातक की पढाई पूरी करने के पश्चात सन 1999 में मात्र 700 रुपये लेकर वह गाँव से मुंबई आये थे तब उनके पास रहने के लिए कुछ नहीं था न ही कोई पहचान वाला था जिसके यहाँ पर उन्हें रहने का ठिकाना मिल सकें. इसलिए दिनभर वह काम की तलाश में इधर उधर भटकते रहते थे और रात में सोने के लिए फूटपाथ का सहारा लिया करते थे. फूटपाथ पर उनकी ठेले वालों से और वहां पर दूकान लगाने वालों से उनकी काफी अच्छी दोस्ती हो गयी थी. उन्होंने यह भी कहाँ की उन्होंने फूटपाथ पर कोई भी रात भूखे पेट नहीं गुजारी.
जूते फटे पहनके आकाश पर चढ़े थे,सपने हमारे हरदम औकात से बड़े थे,
सिर काटने से पहले दुश्मन ने सिर झुकाया, जब देखा हम निहत्थे मैदान में खड़े थे.
जब किसी व्यक्ति ने उनके चेहरे पर पेसाब कर दिया था.
मनोज जी अपने इंटरव्यू में आगे बताते है की उनके गाँव से उनके एक जाननेवाले वही पर एक चाल में रहते थे, मनोज भी उन्ही के साथ रहने लगे उन्हें इस बात की ख़ुशी थी चलो कम से कम सर के उपर छत तो मिल गयी, मनोज जी ने आगे बताते हुए कहा की वह व्यक्ति बहुत ज्यादा शराब का सेवन करते थे, ऐसे ही एक रात उन्होंने बहुत ज्याद पी लिया था, और रात में करीब 2 बजे के आस-पास वह व्यक्ति मनोज के ऊपर पेशाब करने लगा, वह चौककर उठे और यह सब देखकर बहुत रोये और अगले दिन से वापस आकर उसी फूटपाथ पर सोने लगें.
लिखने की वजह से शादी टूट गयी.
धर्म परिवर्तन के कोहराम के बीच ही इनके घरवालों ने इनकी शादी तय कर दी और 13 मई 1997 के दिन इनकी शादी होनी थी सारे कार्ड बट चुके थे साड़ी तैयारियां हो चुकी थी लेकिन बाबा तुलसीदास ने कहा है ” होई है वही जो राम रची राखा” इसी तरह एक दिन दुल्हन का भाई उनसे मिलने आया और पुछा की आप शादी के बाद क्या करेंगे, इस पर मनोज जी ने कहाँ की आगे भी लिखना जारी रखेंगे, और इसको ही अपना कैरियर बनायेंगे, बस इसी बात पर लड़की भाई ने उनकी शादी कैंसिल कर दी.
लपक के चलते थे बिल्कुल सरारे जैसे थे,
नये-नये थे तो हम भी तुम्हारे जैसे थे.
सबसे बड़ा ब्रेक कब मिला ?
मनोज मुंतशिर अनूप जलोटा जी के लिए भी भजन लिखा है और 2005 में कौन बनेगा करोडपति का ल्यिरिक्स लिखने का मौका मिला लेकिन इनको सबसे बड़ी उपलब्धि 2014 में ‘एक विलेन’ के लिखे हुए गीत ‘तेरी गलियाँ’ से मिला जिसने कई ढेर सारे अवार्ड जीते फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और ‘कौन तुझे यूँ प्यार करेगा’ और केसरी फिल्म के गीत ‘तेरी मिट्टी में मिल जावा’ और बाहुबली फिल्म के संवाद लिखकर इन्होने अपना लोहा मनवा लिया.
इसके अलावा इन्होने रुस्तम, नाम शबाना, हाल्फ-गर्लफ्रेंड, बादशाहों, काबिल इत्यादि फिल्म के गाने लिखकर आज भारतीय सिनेमा जगत के एक बहुत ही मशहूर ल्यिरिसिस्ट और संवाद करता है.
मनोज मुन्तशिर की शायरी हिंदी में.
1 – जैसा बाजार का तकाजा है,
वैसा लिखना अभी नही सीखा
मुफ्त बंटता हूँ आज भी मैं तो
मैंने बिकना अभी नही सीखाएक चेहरा है आज भी मेरा
वो भी कमबख्त इतना जिद्दी है
जैसी उम्मीद है जमाने को
वैसा दिखना अभी नही सीखा.
2 – आज आग है कल हम पानी हो जायेंगे,
आखिर में सब लोग कहानी हो जायेंगे.
3 – कश्तियाँ हमने जला दी है भरोसे पर तेरे
अब यहाँ से नहीं लौट कर जाने वाले।
4 – मैं मनोज मुंतशिर हूँ मेरे जैसे सैकड़ो है
मेरी शायरी पर चाहो तो ऐतराज करना
ये जुबान मेरी दुनिया में सबसे बढकर
मैं उर्दू बोलता हूँ इसका लिहाज करना.
5 – ये गलत बात है कि लोग यहाँ रहते है,
मेरी बस्ती में अब सिर्फ मकाँ रहते है,
हम दिवानो का पता पूछना तो पूछना यूँ
जो कही के नही रहते वो कहाँ रहते है.