Biography Of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय : Biography Of Maharana Pratap

महाराणा प्रताप का जीवन परिचय : Biography Of Maharana Pratap

भारत के इतिहास में तमाम ऐसे महान योद्धा हुए जिनके कारण भारत देश का गौरव और अस्तित्व पर कोई आंच नहीं आने पायी जिन्होंने अपने अदम्य साहस और वीरता से इसकी रक्षा की.

 

Biography Of Maharana Pratap
                             Biography Of Maharana Pratap


अब हमें यहाँ ये सोचना है की हमारी और दुनिया के नजर में वीर कौन है वो मुग़ल शासक जिन्होंने लाखों बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया या फिर भारत के वो महान और वीर शासक जिन्होंने लाखों लोगों की ज़िन्दगी बचाई और उन्हें नया जीवनदान दिया.

लेकिन हमारे कम्युनिस्ट विचार धारा और अंग्रेजो के मिलीजुली चाल से उन हत्यारों को महान बताया गया और उन वीरों को वो पहचान ही नहीं मिली जिनके वो हकदार थे. इसी कड़ी में राजपूतों का बहुत ही बड़ा और अमूल्य योगदान रहा है भारत को हर खतरे से बचाने के लिए, वीरों की इस धरती पे राजपूतों के तमाम छोटे-बड़े ऐसे राज्य रहे है जिन्होंने बड़ी वीरता और बहादुरी से हर खतरे का सामना किया.

उसी कड़ी में एक राज्य है मेवाण जिसने मुगलिया सल्तनत के दांत खट्टे कर दिए जिसमें बप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा, महाराणा उदय सिंह और राजपूतों के गौरव और भारत के वीर प्रतापी शासक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह जिनके बारें में आज हम बात करने वाले है.

वीर शिरोंमणि महाराणा प्रताप का जन्म और राज्याभिषेक :

जब भारत में मुगलिया सल्तनत अपने क्रूरता और छल-कपट से पुरे भारत में मुग़ल शासन स्थापित करना चाहते थे उसी समय 9 मई 1540 ई. को राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में महाराजा उदय सिंह और माता राणी जीवंत कंवर के कोख से एक बालक का जन्म होता है जिसका नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था जिसको बचपन में सब ‘कीका’ के नाम से पुकारते थे.

जब अकबर का आतंक अपने चरम पर था और वो पुरे भारत को अपने मुगलिया झंडे के नीचे लाना चाहता था तब महराणा प्रताप के पिता महाराज उदय सिंह उस से भयभीत होकर उत्तरधिकारि अपने छोटे बेटे जगमाल सिंह को बनाकर खुद जाकर अरावली के पर्वतों में रहने लगे.

महाराणा प्रताप का राज्यतिलक 

सारे प्रजा और मंत्रियों को राजा के इस निर्णय से बहुत दुःख हुआ क्योंकि राजा के योग्य सिर्फ महाराणा प्रताप ही थे, जगमाल सिंह राजगद्दी और सत्ता के नशे में बहुत चूर था वो जनता पर अत्याचार करने लगा और जब महाराणा ने जब उसको समझाने की कोशिश की तब उसने महाराणा को ही अपने राज्य से निकाल दिया, उसके बाद जब महाराजा उदय सिंह का निधन हो गया तो सामन्तो ने 1 मार्च 1576 ई. को महाराणा प्रताप को सिंहासन पर बिठाया गया जगमल सिंह को ये अपमान बर्दास्त न हुआ और वो जाकर अकबर से मिल गया और अकबर ने उसे कई राज्यों का सरदार बना दिया.

जब महराणा प्रताप ने गद्दी संभाली तब उनकी राजधानी उदयपुर थी जहाँ पर मुगल आसानी से आक्रमण कर सकते थे तब अपने मंत्रिमंडल के सुझाव से उन्होंने उदयपुर को छोड़कर कुम्भलगढ़ और गोगुंदा में पहाणी इलाको में अपना केंद्र बनाया.

महाराणा प्रताप ने जब गद्दी संभाली थी तब राजपूतो का साम्राज्य बहुत ही नाजुक मोड़ पे था क्योंकि अधिकतर राजपूत राजाओ ने या तो मुगलों के आगे घुटने टेक दिए थे या फिर उन से अपना रिश्ता जोड़ लेते थे उस समय कोई ऐसा शासक नहीं थी जो मुगलों का सामना कर सके. लेकिन महाराणा प्रताप को अपने पुर्बजों की शान को मिट्टी मिलाकर किसी की आधीनता स्वीकार नहीं थी.

उनके पास बहुत से लुभावने प्रस्ताव आते थे की वो अपना हठ छोड़कर मुग़ल किन अधीनता स्वीकार कर लें, लेकिन हर बार उन्होंने अपने कुल और मर्यादा को अहमियत देते और हर प्रस्ताव को ठुकरा देते थे, जिससे अकबर उनसे बहुत चिढ़ता था और किसी भी तरीके से उन्हें सबक सिखाना चाहता था, लेकिन उसका ये सपना एक सपना ही रह गया.

 

कुल देवता :

महाराणा प्रताप मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के राजा थे जिनके कुल देवता एकलिंग महादेव थे, इनके कुलदेवता का मंदिर उदयपुर में स्थित है जिसकी स्थापना 8वी शताब्दी में बप्पा रावल ने कराया और उनकी मूर्ति की स्थापना की.

प्रताप की वीरता और साहस:

उनके दुश्मन भी उनकी शूरता को देखकर उनकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाते थे. अकबर उनको अपने अधीन करना चाहता था और इसके लिए उसने अजमेर को अपना केंद्र बनाकर उनपर बहुत सारे अभियान करता लेकिन महराणा प्रताप के बुद्धि और बल के कारण वो हमेशा मात खाता रहा.

महराणा प्रताप की वीरता और साहस का आप इस बात से ही अंदाजा लगा सकते है की वो 80 किलो के भाले और 70 किलो के कवच, मुकुट और छत्र का उपयोग करते है उनके पुरे अस्त्र-शस्त्र को मिलाकर कुल वजन 200 किलो हो जाता था जिसको लेके वो दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़े जिसका नाम चेतक था उसको लेकर युद्ध क्षेत्र में उतरते थे.

हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध :

ब अकबर अपने सारे दांव पेंच अपना कर थक गया तो उसने अपनी बहुत बड़ी सेना के साथ 30 मई 1576 दिन बुधवार को उसने महराणा प्रताप के ऊपर आक्रमण कर दिया जिसकी अगुवाई महावत खा, आसफ खा, मानसिंह, जहागीर (शहजादा सलीम) जैसे लोग कर रहे थे,

मुगलों के लगभग 80000सैनिक के सामने बहुत थोड़े से राजपुताना शूरवीर के बीच हल्दीघाटी के बीच में एक बहुत भयंकर युद्ध छिड़ गया, मुगलों की सेना देखते ही देखते टिड्डी के दल की तरह राजपूतों के ऊपर मडराने लगी लेकिन हामारे देश के राजपूती शूरवीरों ने बहुत ही बहादुरी और कुशलता पूर्वक सामना किया.

कहते है की महराणा प्रताप जिस तरफ निकलते वहा मुगलों की लाशें बिछ जाती थी, लेकिन वो और उनकी मुठ्ठी भर सेना आखिर कब तक उस विशाल सेना का सामना कर पाते ऐसे में राजपूती सैनको ने महाराणा प्रताप को वह से निकालना ही उचित समझा तब झालाओ के सरदार ने उनका मुकुट और क्षत्र पहनकर मुगलों का ध्यान भटकाया और प्रताप को निकलने का रास्ता दिया.

चेतक की वीरत :

जब वो मुग़ल सैनिको को चकमा देकर निकल रहे थे तब दो मुग़ल सैनिक उनके पीछे पड़ गए थे, महाराणा प्रताप के वीर घोड़े चेतक ने बहादुरी दिखाई और अत्यधिक घायल होने के बाद भी वो इतनी तेज से दौड़ा की वो हवा से बातें करने लगा और मुग़ल सैनिको को पीछे छोड़ दिया और एक पहाड़ी नाले को एक छलांग में पार कर गया और इस तरह उसने महाराणा प्रताप की रक्षा की और खुद वीरगति को प्राप्त हो गया.

महाराणा प्रताप का प्रवास :

युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को अरावली की पहाड़ियों में शरण लेनी पड़ी और एक पहाड़ी से दुसरे पहाड़ी पर अपना ठिकाना बदलना पड़ता था और कन्द-मूल और फल पर जीवन यापन करना पड़ा.

विक्रम संवत 1633में अकबर को महाराणा प्रताप के ठिकाने का पता चाल और वो खुद अपने सैनिको के साथ प्रताप को पकड़ने निकल पड़ा और उन पर हमला कर दिया, लेकिन महाराणा प्रताप ने छापामार और गोरिल्ला युद्ध में माहिर थे उन्होंने अपनी शौर्यता का ऐसा परिचय दियां की अकबर को अपनी जान बचाकर वहां से निकलना पड़ा.

उनके प्रवास के समय में महाराजा भामाशाह ने उनकी बहुत मदद की और अपनी सारी सम्पति बेच कर उनको धन दिया जिसको लेकर उन्होंने फिर से एक नई सेना संगठित की और अपने राज्यों को दुबारा अपने पास लाने का संकल्प किया.

 

मेवाड़ का मैराथन-(दिवेर-छापली का युद्ध):

राजस्थान के इतिहास में दिवेर-छापली के युद्ध को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है जो 1582 में महाराणा प्रताप और अकबर के सेना के बीच में लड़ी गयी उस समय देश तमाम हिस्सों में मुगलों के खिलाफ कई राज्यों ने विद्रोह कर दिया था जिससे मुग़ल कमजोर पड़ने लगे थे.

इसी का फायदा उठाकर महराणा प्रताप ने भी अपने मेवाड़ मुक्ति का प्रयास और तेज कर दिया और 1585 उन्होंने लगभग अपने 36 राज्यों को वापस ले लिया और इस तरह उन्होंने अकबर को एकबार फिर से मात दे दिया था, 12 वर्ष के कठिन संघर्ष के बाद भी अकबर ने महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर सका.

महाराणा प्रताप का आखिरी समय :

अपने सभी राज्यों को वापस लेने के पश्चात महाराणा प्रताप उसकी देखभाल और प्रजा के सुख-सुविधावो पर ध्यान देने लगे और एक महान शासक की तरह राज करने लगे लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे की मात्र 11 साल बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नै राजधानी चावंड में उन्होंने आखिरी सांस ली.

महाराणा प्रताप के डर से अकबर ने अपनी राजधानी लाहौर लेकर चला गया और जब तक वो जीवित थे तब तक उसने मेवाड़ की तरफ आँख उठाकर नहीं देखा,

उनकी मृत्यु के बाद वह फिर से अपनी राजधानी लाहौर से दुबारा आगरा लेकर आ गया, महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार जब उसे मिला तो बहुत ही दुखी और निराश हुआ और उसने कहा की उसने भारत में ऐसा वीर योद्ध नहीं देखा जिसने अपनी मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया हो, उसकी प्रताप पर विजय का सपना अधूरा ही रह गया.

भारत देश ऐसे तमाम वीरगाथाओ से वीर पड़ा है महाराणा प्रताप के सच्चे राजपूत थे जिन्होंने कभी भी अपने कुल और मर्यादा के विरुद्ध कोई काम नहीं किया उन्होंने जंगल में जीवन व्यतीत किया फल-फूल खाकर जीवन गुजारा लेकिन कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की. वो अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहे और अपना नाम इतिहास के पन्नो में अमर कर दिया.

ऐसे महाननायक को बारम्बार प्रणाम जिनकी वजह से भारत देश पर कोई आंच नहीं आने पायी.

जय हिन्द, जय भारत :

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