सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय.
जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, और सुमित्रानंदन पंत की ही तरह छायावादी युग के एक प्रमुख लेखक साहित्यकार, उपन्यासकार और एक महत्वपूर्ण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” का जन्म 21 फरवरी 1899 ( माघ शुक्ल 11, संवत 1955 ) को महिषादल रियासत ( पश्चिम बंगाल ) में हुआ था.
उनके पिता पंडित रामसहाय तिवारी महिषादल रियासत में सिपाही की नौकरी करते थे. जो मूलतः उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले में गढ़कोला नामक गाँव के निवासी थे. इनकी माता जी का नाम रुक्मणि देवी था, जब ये मात्र 3 साल के थे तब इनकी माता रुक्मणि देवी का स्वर्गवास हो गया और इनके ऊपर से ममता की छाया उठ गयी.
निराला जी की शिक्षा.
निराला जी प्रारंभिक शिक्षा बंगाली माध्यम से ही हुई, फिर हाई-स्कूल के बाद इन्होने संस्कृत और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान घर पर ही किया क्योंकि पिता के छोटी सी नौकरी में बाहर पढ़ पाना संभव नहीं था. हाई-स्कूल की पढ़ी के बाद ये पुनः अपने निवास स्थान गढ़कोला वापस आ गए और यही से इन्होने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, और बांग्ला भाषा में निपुड़ता हासिल की.
सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” जी स्वामी परमहंस जी, स्वामी विवेकानंद जी, और श्री रविन्द्रनाथ टैगोर जी से बहुत प्रभावित थे और उन्हें ही अपना आदर्श मानते थे. बचपन से ही उन्हें तुलसीदास कृत रामचरितमानस का पाठ बहुत अच्छा लगता था, जिसका पाठ वो अक्सर घर पर किया करते थे.
निराला जी की रुचियाँ.
हाई-स्कूल में जी का मन पढाई में नहीं लगता था जिसके कारण उन्हें अपने पिता से हमेशा डांट खानी पड़ती थी, इनका मन खेल-कूद, सैर-सपाटा, तैराकी, कुश्ती लड़ने और संगीत में विशेष रूचि रहता था.
निराला जी का पारवारिक और वैवाहिक जीवन.
निराला जी जब 15 वर्ष के थे तब इनका विवाह रायबरेली जिले के डलमऊ के निवासी पं. रामदयाल की पुत्री मनोहर देवी से हो गया. मनोहरा देवी रूपवती और बुधिमान महिला थी. इन्होने ही निराला जी को हिन्दी सीखने और हिन्दी में कविता लिखने के लिए प्रोत्साहित किया, तभी से निराला जी ने बांग्ला के साथ-साथ हिन्दी में भी रचनाये करने लगे.
लेकिन वो कहते है न की किसी व्यक्ति के जीवन में ख़ुशी ज्यादा दिन तक नहीं रहती है. जब ये मात्र 16-17 वर्ष के रहे होंगे तब in पर विपातियों का पहाड़ टूट पड़ा, इन्फ्लुएंजा महामारी के चलते इनके पिता, चाचा, भाई, और भाभी का कुछ-कुछ अंतराल के बाद निधन हो गया. फिर भी इन्होने अपने आप को किसी तरह संभाला और घर का सारा खर्च निर्वहन करने लगे.
लेकिन शायद इनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, सिर्फ इतना ही दुःख इनके लिए काफी नहीं था. जब ये 20 वर्ष की अवस्था में थे तब इनकी धर्मपत्नी का निधन हो गया और ये बुरी तरह से टूट गए, फिर भी इन्होने परिस्थित खिलाफ लड़ना ही अपना भाग्य समझा, सारे परिवार के बिखर जाने के बाद भी इन्होने हिम्मत नही हारी और किसी तरह से अपने परिवार का भरण-पोषण करते रहे.
निराल जी का कार्यक्षेत्र.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को 1918 में अपने पिता के मरणोपरांत उनकी जगह पर उन्हें नौकरी करने को मिल गयी, और उन्हें महिषादल में ही कार्य करने के लिये मिला, लेकिन इन्हें अपनी लेखन कार्य में पर्याप्त समय नही मिल पा रहा था. इसलिए 1922 में ही उस नौकरी को छोड़कर पूर्ण रूप से लेखन और सम्पादन कार्य में लग गए.
1922-23 से कोलकाता से प्रकशित ‘समन्वय’ पत्रिका का सम्पादन किया बाद में इन्होने अगस्त 1923 से ‘मतवाला’ के सम्पादन मंडल में कार्य किया, कुछ समय बाद ये पुनः लखनऊ आ गए जहाँ उनकी नियुक्ति ‘गंगा पुस्तक माला’ में हुई जहाँ इन्होने वहां की मासिक पत्रिका ‘सुधा’ के लिए कार्य करने लगे और वर्ष 1935 तक इससे जुड़े रहे. वर्ष 1942 में ये इलाहबाद ( प्रयागराज ) में अपने शेष सम्पूर्ण जीवन को बिताया और वही से स्वतंत्र लेखन और अनुवाद का कार्य करने लगे.
निराला जी का लेखन-क्षेत्र.
इनकी पहली कविता सन 1920 में ‘जन्मभूमि’ पर लिखी गयी एक कविता थी. और पहला निबंध ‘बंग-भाषा’ का उच्चारण 1920 में ‘सरस्वती’ मासिक पत्रिका में प्रकशित हुई थी. इनका पहला कविता संग्रह ‘अनामिका’ नाम से वर्ष 1923 में प्रकशित हुआ थी.
बहुत लम्बे समय तक लोगों को लगता था की इनकी पहली रचना ‘जूही की कली’ जिसकी रचना खुद निराला जी ने 1916 ई बताई थी, लेकिन इसकी वास्तविक रचना 1921 ई के आस-पास और इसका प्रकाशन 1923 ई में हुआ था.
निराला जी मृत्यु.
छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने 15 अक्टूबर 1961 को इलाहबाद ( प्रयागराज ) में अपनी अंतिम सांस ली. निराला जी आज भी अपने कविता और लेखों से हम सभी के दिलों में जिंदा है.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी की कृतियाँ. |
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उपन्यास |
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काव्यसंग्रह |
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निबन्ध-आलोचना |
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पुराण कथा |
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कहानी संग्रह |
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बालोपयोगी साहित्य |
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अनुवाद |
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निष्कर्ष.
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने अपने लेखों में कल्पनाओ का प्रयोग करने से हमेशा बचे है, वो जो कुछ भी लिखते थे एकदम यथार्थ और लोगों के दिलों से निकलने वाली अनुभूतियों को महसूस कर के लिखते थे, इसलिए उनके बहुत सारे आलोचक भी हो गए थे. जो इनकी लेखनी को बिल्कुल भी पसंद नही करते थे.
वे बचपन से ही बहुत दार्शनिक थे इसलिए उनकी लिखावट में दार्शनिकता झलकती थी, इस दार्शनिक उपयोगिता के कारण कभी-कभी उनके लेख बहुत ही जटिल हो जाते थे, जिससे लोगों को उसका मतलब निकलने में थोड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता था. इसलिए विचारक लोग उन पर दुरुहता का आरोप लगाते थे.
निराला जी एक ऐसे लेखक थे. जिन्होंने अपने जीवन बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे थे, और उन परिस्थितियों से लड़कर निरंतर आगे बढ़ते रहे दूसराकोई व्यक्ति इतनी विपत्ति पड़ने के बाद फिर से उठ खड़ा होने असमर्थ होता लेकिन उन्होंने अपने हालात को अपने उपर नही हावी होने दिया और वे उससे लडे और जीते भी, और अपना नाम साहित्य की दुनिया में हमेशा के लिए अमर कर दिया.
निराला जी की कुछ रचनाये :
इलाहबाद में पत्थर तोडती महिला को देखकर लिखी गयी उनकी रचना.
वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर
वह तोड़ती पत्थर
कोई न छायादार पेड़
वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार
श्याम तन, भर बंधा यौवन
नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार-बार प्रहार
सामने तरू-मालिका अट्टालिका प्रकार
रास्ते पर चलते हुए भिखारी को देखकर लिखी गयी कविता.
वह आता-
दो टूक कलेजे को करता, पछताता पथ पर आता.
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को – भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता –
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता.
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए.
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए |
ठहरो | अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा.
खून की होली जो खेली. ( ‘नए पत्ते’ कविता संग्रह से )
रँग गये जैसे पलाश, कुसुम किंशुक के, सुहाए,
कोकनद के पाए प्राण ख़ून की होली जो खेली.
निकले क्या कोंपल लाल, फाग की आग लगी है,
फागुन की टेढ़ी तान, ख़ून की होली जो खेली.
खुल गई गीतों की रात, किरन उतरी है प्रात की;
हाथ कुसुम-वरदान, ख़ून की होली जो खेली ।
आई सुवेश बहार, आम-लीची की मंजरी;
कटहल की अरघान, ख़ून की होली जो खेली ।
विकच हुए कचनार, हार पड़े अमलतास के;
पाटल-होठों मुसकान, ख़ून की होली जो खेली ।
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