होली होलिका

होली क्यों मनाया जाता है होली 2024 में कब है | होलिका दहन क्यों होता है |

होली 25 मार्च 2024 दिन सोमवार को है

होली क्यों मनाया जाता है होली 2023 में कब है |होलिका दहन क्यों होता है 

अपने देश भारत की एक बहुत ही खूबसूरत बात ये है की यहाँ पर पूरे विश्व के आस्था और तपस्या का केंद्र बिंदु है, यहाँ पर सभी त्यौहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ से मनाया जाता रहा है और आगे भी जारी रहेगा. होली भी हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक ऐसा त्यौहार है जिसकी ख़ूबसूरती का कोई मोल नहीं है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाना वाला यह त्यौहार यह अपने आप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है.

होली 2023 में कब है ?

इस वर्ष होली 25 मार्च दिन सोमवार को है फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा को होलाष्टक भी कहा जाता है. इन दिनों के बीच शुभ कार्य करना वर्जित रहता है, शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन इन दो कारणों में नही करना चाहिए, अगर कोई भद्रा लगा हुआ है तो या फिर उस दिन तीन मुहूर्तों तक अगर पूर्णिमा न रहे तब इन दो कारणों में होलिका दहन नही किया जात है.

होलिका दहन क्यों किया जाता है ?

आप में से बहुत से लोग ये सोचते होंगे की आखिर होलिका क्यों जलाई जाती है, तो आज हम बताते है आखिर होलिका क्यों जलाई जाती है.

भक्त प्रहलाद और होलिका की कथा. 

आप सबको तो पता ही होगा की दानवराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, और उसके पिता को यह बात पसंद नही थी  उसने अपने राज्य में में किसी भी देवी-देवता के पूजन करने पर प्रतिबन्ध लगवा दिया था और वह स्वयं की पूजा करवाता था, लेकिन उसका पुत्र भगवान विष्णु का परम उपासक था.

इस कारण से हिरण्यकश्यप ने इसका वध करने के लिए तमाम प्रयत्न कर लिए थे लेकिन भगवान विष्णु उसे हर बार बचा लेते थे, इसलिए  उसने अपनी बहन होलिका को यह आदेश दिया की वह प्रहलाद को गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाए क्योंकि होलिका को यह वरदान था की वह अग्नि से नहीं जलेगी, लेकिन हुआ उसका उल्टा वह जलकर भस्म हो गयी और प्रहलाद सुरक्षित बच निकले, तभी इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व की तरह मनाया जाना लगा.

भगवान कृष्ण की कहानी. 

जब भगवान कृष्ण छोटे थे तब उनके मामा कंश ने उनका वध करने के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजा था, जिसने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण करके भगवान कृष्ण को यशोदा के महल से दूर लेकर चली आई और अपने स्तन पर जहरीला लेप लगाकर उसे भगवान को पिलाने लगी, लेकिन प्रभु की माया देखिये जो स्वयं नारायण के अवतार थे उनको कोई क्या मारेगा, स्वयं पूतना ही मर गयी, उस दिन ब्रज की सभी गोपियाँ मिलकर कान्हा के साथ होली (Holi) खेलने लगी,  विन्ध्याचल पर्वत के निकट रामगढ़ में इससे जुड़े 300 वर्ष पुराने अभिलेख भी मिलें है. जो श्रीकृष्ण के समय के थे.

भगवान राम के पूर्वज की कहानी.

महाभारत के समय भगवान श्रीकृष्ण ने युधिस्ठिर को बताया की भगवान श्रीराम के पूर्व उनके वंसज रघु के शासन काल में उनके राज्य में एक राक्षसी रहती थी जिसको वरदान था की वो किसीके हाथ से नहीं मरेगी सिवाय बच्चों के, वह बच्चों से बहुत डरती थी, एक सन्यासी गुरूजी ने ये बताया की अगर नगर के बच्चे नगर के बाहर लकड़ी के टुकड़ों, पुवाल सरकंडे इत्यादि का ढेर लगाकर उसमे आग लगाकर उसके चारो और ढोल-नगाड़े बजाकर नृत्य किया जाय और, शोर मचाया जाय तो राक्षिसी भाग जायेगी, और जब ऐसा किया गया तो सचमुच वो भाग गयी और फिर कभी उस जगह नही आई, तब से लेकर आज तक हर वर्ष मे फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होली खेली जाती है और होलिका का दहन किया जाता है.

होली (होलिका) पूजन विधि –

नगर या फिर गाँव के बाहर लकड़ी, घास-फूस इत्यादि चीजें जमाकर के शुभ मुहूर्त में पुरोहित के द्वारा विधिवत मंत्रोचारण करके होलिका जलाना चाहिए और उसके बाद उसके चारों तरफ मन्त्र पढ़कर परिक्रमा करना चाहिए.

ऊं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीमेव कुरु-कुरु वांछितनेव ह्रीं ह्रीं नमः

इस मन्त्र का उच्चारण करने से दुःख दरिद्रता दूर होती है और व्यापार में तरक्की होती है. तो आइये इस Holi हम अपने सभी रंजिस भुलाकर अपने भाईचारे को और बढ़ाये और भाईचारे का ऐसा रंग लगाये जो कभी न उतर सके. आप सभी पाठक को होली की हार्दिक शुभकामनाये.

Happy Holi

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