पंडित शिव कुमार शर्मा

संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा नहीं रहे. Santoor player Pandit Shiv Kumar Sharma is no more.

संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा नहीं रहे. 81 वर्ष की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा .

पंडित शिव कुमार शर्मा
पंडित शिव कुमार शर्मा

मशहूर संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा आज इस दुनिया को छोड़कर परम्ब्रम्ह में लीन हो गए, काफी दिनों से उन्हें किडनी की बिमारी थी, जिसके वजह से वह डायलासिस पर चल याहे थे. उनके निधन पर पूरा संगीत जगत से लेकर पूरा देश शोक में है, प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है. आइये आज हम उनसे जुडी उनके जीवन की कुछ घटनाओं को जानते है.

13 जनवरी 1938 को जम्मू में जन्मे पंडित शिव कुमार शर्मा का संगीत में शौक बचपन से था, उनके पिता उमादत्त शर्मा भी एक मशहूर गायक थे, महज 5 साल की उम्र से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी, और 13 वर्ष की उम्र में संतूर बजाना सीखने लगे थे. आज उन्ही की दें है की संतूर वाद्य यंत्र को पूरे विश्व में बजाय जाता है.

जब वह महज 17 वर्ष के थे तब ही ऊन्होने अपना पहला शो मुंबई में किया था, जो बहुत सफल हुआ था, उन्होंने अपने संतूर वादन और गायन से संगीत की दुनिया को एक नए संगीत स वाकिफ कराया. उन्होंने मशहूर बांसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया के साथ में मिलकर अपनी जोड़ी बनायीं जिन्होंने भारतीय संगीत के अभूतपूर्व कार्य किये.

यश चोपड़ा की डूबती नैय्या को पार लगाया ?

फ्लॉप फिल्मों के दौर से गुजर रहे यश चोपड़ा ने भी इनका साथ किया और इनके साथ फासले ( 1985 ) और विजय ( 1988 ) में बनाई यह फिल्म तो पिट गयी लेकिन इसके संगीत हित हुआ था, फिर उन्होंने ऋषि कपूर, विनोद खन्ना और श्रीदेवी के साथ में मिलकर चाँदनी (1989) बनायीं जो बहुत बड़ी हित साबित हुई और इसका संगीत ‘मेरे हाथों में नौ-नौ चूड़ियाँ है’ आज भी लोगों को पसंद आता है. शिव-हरी की जोड़ी ने यश चोपड़ा की डूबती नैय्या को मझधार से बाहर किया था.

शिव कुमार शर्मा-हरीप्रसाद चौरसिया की सफल जोड़ी.

पंडित शिव कुमार शर्मा और हरिप्रसाद चौरसिया ने मिलकर बहुत सारे हिट संगीत दिए इनका साथ 1966 से शुरू हुआ इन्होने विजय, फासले, सिलसिला, चांदनी, डर इत्यादि फिल्मों में अपने संगीत को देकर उसके संगीत को अमर कर दिया, लोगों के जुबान पर आज भी ‘रंग बरसे भीगे चुनरवाली’ गाना चढ़ा हुआ है.

जम्मू से महज 5 रूपये लेकर चलने वाला एक नौजवान लड़का जिसने अपनी मेहनत  और लगन के दम पर दुनिया को संतूर जैसा वाद्य यंत्र दिया, अन्यथा फारस से आया यह संतूर वाद्य यंत्र जम्मू के किसी कोने में पड़ा रहता और धुल फांकता. लेकिन अपनी प्रतिभा और निरंतर अभ्यास से इन्होने पूरे भारत में ही नही पूरे विश्व में संतूर की अलग ख्याति दिलवा दी. उनके बेटे राहुल भी उनकी इस परंपरा को जीवित रखते हुए मार्डन युग के संगीतों में उसका प्रयोग कर रहे है.

सत्यजीत राय के जन्मदिवस पर विशेष.

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