Naya Kisaan Bill 2020 Kya hai. नया किसान बिल 2020 क्या है : नए कृषि बिल से क्या फायदा और नुकसान है

साल 2020 अपने आप में एक खट्टा और मीठा अनुभव देने वाला साल रहा जिसमे लगभग आधा साल कोरोना के कारण लाकडाउन में गुजरा, जहाँ एक ओर देश ने अपना 74वा स्वतंत्रता दिवस मनाया और देश अपने 75वे साल की ओर बढ़ चला है. आज हम बात करते है ( Naya Kisaan Bill 2020 Kya hai ) के बारे में.

लेकिन अगर बात की जाय देश के आधे से अधिक आबादी की जो खेती-किसानी करते है और उससे अपना और देश का पेट भरते है, और अगर उनकी खेती-किसानी से आय की बात की जाय तो वो इन 74 साल में बस नाम मात्र के बढे है.
 
Naya Kisaan Bill 2020 Kya hai
Naya Kisaan Bill 2020 Kya hai

और इसी को ध्यान में रखकर मौजूदा सरकार ने नया किसान बिल 2020 लागू किया जिसका कुछ किसान संगठन द्वारा विरोध तो कुछ के द्वारा इसका समर्थन किया गया, कोई इन्हें किसान विरोधी कानून बता रहा है. तो कोई इस कानून को किसान के लिए वरदान बता रहा है.

 
हेल्लो दोस्तों नमस्कार स्वागत है आपका एकबार फिर से हमारे ब्लॉग पर जिसमे आज हम आपको नए किसान बिल 2020 के बारे बताएँगे, और हम बात करेंगे की किसान क्यों इसका विरोध कर रहे है. तो चलिए बिना किसी देरी के शुरू करते है.

Table of Contents

नया किसान बिल क्या है ? ( Naya Kisaan Bill 2020 Kya hai ? )

भारत की मौजूदा मोदी जी की सरकार ने किसानो की आय दोगुनी करने के लिए सितम्बर के महीने में कृषि बिल अधिनियम 2020 लेकर आयी, जिसका देश के कुछ किसान संगठन द्वारा जमकर विरोध किया जा रहा है खासकर पंजाब और हरियाणा के किसान संगठनो द्वारा. तो चलिए एक-एक करके उन तीनो कानूनों के बारे में जानते है.

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा ) कानून 2020 ( Agricultural Produce Trade and Central (Promotion and Facilitation) Act 2020.

इस कृषि बिल के माध्यम से सरकार ने किसानो को पूरे देश में कही भी अपनी उपज बेचने की छुट दे राखी है, इसमें किसान और व्यापारियों को मंडियों के बाहर से की गई खरीददारी और बिक्री पर किसी भी प्रकार का टैक्स से छूट देती है.
 
अगर आसन भाषा में कहे तो अगर किसान या फिर व्यापारी अपने उपज को उस प्रदेश या फिर जिले में बेच सकता है जहाँ उसे अपनी उपज का अत्यधिक लाभ मिलेगा, और ये सब करने के लिए उसे किसी भी मंडी में जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
 
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा की इस अधिनियम से किसानो और व्यापारियों के बीच आपसी सामंजस्य बढेगा और इससे किसान और व्यापारी दोनों को फायदा होगा, इस अधिनियम से एक देश एक बाज़ार की सुविधा को बढ़ावा मिलेगा.

विवाद क्या है.

अभी तक तो हमने आपको इस कृषि कानून के बारे में बताया अब आगे समझते है की किसान क्यों इस कानून का विरोध कर रहे है.किसान कह रहे है की इस व्यवस्था से सरकार मंडी को समाप्त कर देगी और किसानो से MSP भी छीन लेगी. और उसे बाद में समाप्त कर देगी.
 
स्वराज्य इण्डिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने कहा “ये बात बिल्कुल सही है कि एपीएमसी मंडियों के साथ कई दिक्कते हैं, किसान इससे खुश भी नहीं हैं लेकिन सरकार की नई व्यवस्था भी ठीक नहीं है. “यह अध्यादेश कहता है कि बड़े कारोबारी सीधे किसानों से उपज खरीद कर सकेंगे, लेकिन ये यह नहीं बताता कि जिन किसानों के पास मोल-भाव करने की क्षमता नहीं है, वे इसका लाभ कैसे उठाऐंगे”
 
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह कहते है “सरकार एक राष्ट्र, एक मार्केट बनाने की बात कर रही है, लेकिन उसे ये नहीं पता कि जो किसान अपने जिले में अपनी फसल नहीं बेच पाता है, वह राज्य या दूसरे जिले में कैसे बेच पायेगा। क्या किसानों के पास इतने साधन हैं और दूर मंडियों में ले जाने में खर्च भी तो आयेगा।”
 

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 ( Essential Commodities Act 1955 ).

किसान बिल 2020 में इस संसोधन का किसान सबसे अधिक विरोध कर रहा है, अगर हम इसमें संसोधन की बात करे उससे पहले हम इस कानून के बारे समझ लेते है की इस कानून में क्या प्रावधान था, जिसे सरकार ने संसोधित करके एक नया क़ानून पास किया है.
 
आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 तब लागू किया गया था जब भारत में आवस्यक वस्तु ( दलहन, तिलहन, अनाज, तेल इत्यादि ) की भारी कमी से जूझ रहा था, ऐसे में उस समय की मौजूदा सरकार ने कालाबाजारी और जमाखोरी रोकने के लिए इस क़ानून को लागू किया था.

आवश्यक वस्तु की श्रेणी ( Essential Category )

अगर बात की जाय आवश्यक वस्तु सामग्री कौन-कौन से है तो इसे 8 श्रेणियों में विभाजित किया गया है जो इस प्रकार है –

1 – उर्वरक.
2 – खाद्य तिलहन व तेल समेत खाने की वस्तुए.
3 – पेट्रोलियम तथा उसके उत्पाद.
4 – कच्चा जूट और जूट के वस्त्र.
5 – ड्रग्स.
6 – कपास से बनने वाला धागा.
7 – खाद्य फसलों के, फल, सब्जियां, पशु का चारा, कपास, और जूट के बीज.
8 – फेस मास्क और हैण्ड सैनिटाइजार.

अब बात करते है की इस अधिनियम में संसोधन क्यों करना पड़ा, इस पर भारत की मौजूदा सरकार का ये कहना है की भारत में अब आवश्यक वस्तु सामाग्री का उत्पादन भारत में पर्याप्त मात्रा में हो रहा है, और इसकी कोई समुचित व्यवस्था न होने के कारण किसानो को इसका सही मूल्य नहीं मिल पा रहा था.
 
अब इसमें संसोधन करके इसमें से दलहन, तिलहन, अनाज, प्याज, आलू, तेल, जैसी वस्तुओ को हटा दिया गया है, सरकार के कहने का मतलब ये है की किसान या व्यापारी अब चाहे तो इन फसलों को जमा करके इसे बाद में बेच सकते है और अपनी उपज का अच्छा लाभ ले सकते है.
 
अगर आसान भाषा में कहा जाय तो सरकार का किसानो निजी खरीददारों और व्यापारियों के भण्डारण करने पर कोई नियंत्रण नहीं होगा. लेकिन अगर देश में आपातकाल में , युद्ध की स्थिति में और प्राकृतिक आपदा के समय आप इसका भंडारण नहीं कर सकते है.
 
इस अधिनियम के पीछे सरकार का कहना है की देश में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज, खाद्य प्रसंस्करणों और निवेश में कमी के कारण किसानो को उसका लाभ नही मिल रहा था, अब इस अधिनियम के द्वारा सरकार पर्याप्त मात्रा में गोदामों और कोल्ड स्टोरेजो का निर्माण करेगी जिससे किसानो की उपज को रखा जाए.

विवाद क्या है.

इस कृषि बिल के विरोध में  कहा जा रहा है की इस अधिनियम से जमाखोरी और बढ़ जाएगी जिससे व्यापारी उन सभी वस्तुओ का भाव चढ़ा देंगे जिसे आम-आदमी के लिए महगाई बढ़ जायेगी.
 
भारतीय किसान महासंघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिमन्यु कोहाड़ आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में हुए संशोधन पर कहते हैं, “समझने की बात यह है कि हमारे देश में 80-85% लघु किसान हैं, किसानों के पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है.
 
यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाज़ारी के लिए लाया गया है। कम्पनियां और सुपर मार्केट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे।” किसान संगठनों का कहना कि इस बदलाव से कालाबाजारी घटेगी नहीं बल्की बढ़ेगी। जमाखोरी बढ़ेगी. “

मूल्य आश्वासन पर किसान ( संरक्षण एवं शशक्तिकरण ) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश ( Price Assurance Farmer (Protection and Empowerment) Agreement and Agricultural Services Ordinance )

इस अध्यादेश के जरिये सरकार का कहना है की इस कानून से किसानो को खरीददार ढूंढने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा और उसे बिना किसी परेशानी के खरीददार आसानी से उपलब्ध हो जाएँगी इसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी कहा जाता है, तो चलिए इसे समझते है.

कृषि समझौता या खेती अनुबंध ( Contract farming )

इस अधिनियम में ये प्रावधान है की किसान अपने किसी कृषि उत्पाद का उत्पादन या पालन करने से पहले उसे एक व्यक्ति, कम्पनी या फिर किसी फार्म से अनुबंध करना होगा, इसके लिए राज्य सरकार एक इलेक्ट्रोनिक रजिस्ट्री के लिए एक अथारिटी की स्थापना कर सकती है.
किसान और स्पांसर के बीच एक बिचौलिया भी रहेगा जो किसान और स्पांसर के बीच उनकी सुविधाओ का आदान प्रदान करेगा. ये समझौते निम्न के बीच हो सकते है

1 – किसान और स्पांसर
2 – किसान – स्पांसर और तीसरा पक्ष ( बिचौलिया )

इस समझौते में उत्पाद के सप्लाई, गुणवत्ता, और उसके मूल्य के साथ ही कृषि सम्बंधित नियमो का उल्लेख भी होगा, ये सौदा केंद्र या फिर राज्य से सम्बंधित किसी बीमा या ऋण से सम्बंधित भी रहेंगे जिससे किसानो और स्पांसरो को उसका लाभ मिल सके. इस समझौते के अंतर्गत ये बताया गया है की कम्पनी या फिर फर्म किसान के जमीन में कोई बदलाव या उस पर अपना स्वामित्व नहीं हासिल कर सकते है और न ही उसमे कोई स्थाई बदलाव कर सकते है.

समझौते की अवधि कितनी होगी :

इस अनुबंध में कृषि समझौते की अवधि एक फसल या फिर अधिकतम 5 साल की होगी, उसके बाद अगर फिर से किसान और स्पांसर का आपसी सामंजस्य बैठता है तो वो इस अवधी को और आगे बढ़ा सकते है.

विवाद और उसका निपटारा

इस बिल में विवाद होने पर ये कहा गय है की स्पांसर और जीसान के बीच में किसी भी प्रकार विरोध होने पर कन्सिलिएशन बोर्ड और सुलह-समझौता कराने के लिए कृषि समझौता किया जायेगा. ये सभी निपटारे निष्पक्ष रूप से किये जायेंगे अगर फिर भी बोर्ड के द्वारा 30 दिनों के भीतर इसका कोई समाधान नहीं निकलता है तो, वे आगे सब डिविजिनल मजिस्ट्रेट से शिकायत कर सकते है.

इस कृषि बिल का विवाद क्या है

इस बिल का विरोध ये है की बड़ी-बड़ी कंपनिया जो है वो किसानो की जमीन को हड़प लेंगी और उनसे मजदूरी करवाएंगी, और किसी वाद-विवाद की स्थिति में सम्बंधित अधिकारी कंपनियों के दबाब में आकर उनके ही हित में फैसला सुनाएंगी, और किसान अपनी ही मेहनत का फल नही पा सकेगा.

अगर 30 दिन के भीतर मुकदमा न सुलझा तो धारा 13 के अनुसार उसे एसडीएम के यहाँ शिकायत करना पड़ेगा और उसकी अपील जिलाधिकारी के पास होगी इन सबके यहाँ आने जाने और मुक़दमे का खर्चा एक आम किसान कैसे सहन कर सकता है, उसका आधे से अधिक कमाई केस लड़ने में ही ख़तम हो जायेगा. 
 
सरदार वीएम सिंह का कहना हैं कि  “30 साल पहले पंजाब के किसानों ने पेप्सिको के साथ आलू और टमाटर उगाने के लिए समझौता किया था। इस अध्यादेश की धारा 2(F) से पता चलता है कि ये किसके लिए बना है। एफपीओ को किसान भी माना गया है और किसान तथा व्यापारी के बीच विवाद की स्थिति में बिचौलिया भी बना दिया गया है। इसमें अगर विवाद हुआ तो नुकसान किसानों का है.”

निष्कर्ष :

ऐसा नहीं है की इस बिल का सिर्फ विरोध ही हो रहा है कई किसान संगठनों और कृषि के जानकार लोगों ने इसका समर्थन भी किया है और इस किसान बिल 2020 को मील का पत्थर भी बताया है.
 
कुल मिलाकर इतना कहा जा सकता है की इस किसान बिल 2020 में कुछ संसोधन करने की आवश्यकता है जिसे सरकार को किसान संगठनों के साथ बैठकर उनसे विचार-विमर्श करके उसे सही किया जाना चाहिए, और अंत में मै सिर्फ इतना ही कहूँगा की किसान की हितैषी वाली पार्टी इस देश में नहीं है, पार्टियाँ सिर्फ उन पर राजनीति करना जानती है.  
तो दोस्तों कैसी लगी आपको हमारे द्वारा दी गयी Naya Kisaan Bill 2020 Kya hai के बारे दी गयी जानकारी नीचे कमेन्ट करके जरुर बताये आप ऐसे ही लेटेस्ट अपडेट के लिए हमे सबस्क्राइब भी करें और हमें फॉलो भी करें.
धन्यबाद.

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