मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय.
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ( दद्दा ) का जन्म उत्तर-प्रदेश के झांसी जिले के चिरगांव में 3 अगस्त 1886 को हुआ था, ये हिंदी भाषा के प्रसिद्ध और भारतीय हिंदी साहित्य में खड़ी बोली प्रथम महत्वपूर्ण कवी माने जाते है. इनके पिता जी श्री रामचरण कनकने और माताजी काशी बाई थी, इनका परिवार शुद्ध वैष्णव परिवार था.
इनका मन अत्यधिक पढाई-लिखी में न लगकर खेलकूद में अधिक लगता था. इन्होने हिन्दी, बांग्ला और संस्कृत की शिक्षा घर पर ही प्राप्त की. 12 वर्ष के आयु में ही इन्होने मुंशी अजमेरी जी के सानिध्य में कनकलता नाम से कविता की रचना करने लगे. आचार्य महावीर प्रसाद के संपर्क में आने से इनकी कविता माषिक पत्रिका “सरस्वती” में भी छपने लगी.
गुप्त जी का कार्यक्षेत्र.
मैथिलीशरण गुप्त जी ने बंगाली काव्यग्रंथ “मेघनाथ-वध” और “व्रजांगना” का हिन्दी में अनुवाद किया, इनकी प्रथम काव्य संग्रह जयद्रथ वध और रंग में भंग प्रकाशित हुई. सन 1913 में इन्होने राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत भारत-भारती का प्रकाशन हुआ जिससे इनकी लोकप्रियता हर जगह फ़ैल गयी.
इन्होने 1911 स्वयं का प्रिंटिंग-प्रेस स्थापित किया जिसका नाम साहित्य-सदन था और अपनी रचनाओं का स्वतः प्रकाशन करने करने लगे. इन्होने संस्कृत के प्रशिद्ध ग्रन्थ “स्वप्न्वासवदत्ता” का सफलता पूर्वक अनुवाद कर इसे प्रकाशित कराया. सन 1916 – 17 ई. में इन्होने “साकेत” की रचना प्रारंभ की और इसको 1931 में पूरा किया. वर्ष 1932 में इन्होने अपनी रचना यशोधरा लिखी और उसका प्रकाशन किया,.
उसी बीच ये गांधी जी के संपर्क में आये और इन्होने सत्यग्रह में भी भाग लिया जिसके लिए इन्हें 16 अप्रैल 1932 को 7 महीने के लिया जेल भी जाना पड़ा बाद में सबूत के आभाव में इनको छोड़ दिया गया. महात्मा गांधी के द्वारा इन्हें “राष्ट्रकवि” की उपाधि से नवाजा गया. इन्होने 1954-55 झांसी में मानस-मुद्रण की स्थापना की.
मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाएँ.
गुप्त जी की रचनाएं –
महाकाव्य –
साकेत, यशोधरा.
खंडकाव्य –
अंजलि और अर्घ्य, अजित, अर्जन और विसर्जन, काबा और कर्बला, जयद्रथ वध, भारत-भारती, पंचवटी, द्वापर, सिद्धराज, नहुष, कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर, गुरुकुल , जय भारत, युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र, विष्णुप्रिया, उर्मिला, लीला, प्रदक्षिणा, दिवोदास , भूमि-भाग, वक संहार , शकुंतला, विश्व वेदना, राजा प्रजा.
नाटक –
विरहिणी, वैतालिक, शक्ति, सैरन्ध्री, स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा , हिन्दू, चंद्रहास, रंग में भंग , राजा-प्रजा, वन वैभव, विकट भट, ( अनघ, चरणदास, तिलोत्तमा, निष्क्रिय-प्रतिरोध ये सभी भास जी के नाटक, स्वप्न्वासवदत्ता, प्रतिमा, अभिषेक, अविमारक. का रूपान्तरण )
मैथिलीशरण गुप्त जी को प्राप्त पुरुष्कार.
वर्ष 1935 में इन्हें “साकेत” के लिए हिन्दुस्तान अकादमी पुरुष्कार प्राप्त हुआ और 1948 में इन्हें आगरा विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि और 1954 में इन्हें पद्म-भूषण से नवाजा गया ये 1952-64 तक राज्य सभा के सदस्य भी मनोनीत किये गए.
गुप्त जी का निधन.
12 दिसंबर 1964 को भारतीय साहित्य जगत का चमकता सितारा दिल का दौरा ( Heart-Attack ) से हमेशा के लिए अस्त हो गया, पढाई-लिखाई में कमजोर होने के बावजूद इन्होने भारतीय साहित्य को एक अलग मुकाम पर पंहुचा दिया. इन्होने अपनी पहचान एक महत्वपूर्ण कवि, अनुवादक, राजनेता और नाटककार के रूप में बनाई.
महाकाव्य साकेत –
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में.
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,
राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये.
बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है,
जिसकी रक्षा में रत इसका, तन है, मन है, जीवन है |
यशोधरा महाकाव्य –
घूम रहा है कैसा चक्र,
वह नवनीत कहां जाता है, रह जाता है तक्र.
पिसो, पड़े हो इसमें जब तक.
क्या अन्तर आया है अब तक.
सहें अन्ततोगत्वा कब तक-
हम इसकी गति वक्र.
घूम रहा है कैसा चक्र.
कैसे परित्राण हम पावें.
किन देवों को रोवें-गावें.
पहले अपना कुशल मनावें
वे सारे सुर-शक्र.
घूम रहा है कैसा चक्र.
बाहर से क्या जोड़ूँ-जाड़ूँ.
मैं अपना ही पल्ला झाड़ूँ.
तब है, जब वे दाँत उखाड़ूँ.
रह भवसागर-नक्र.
घूम रहा है कैसा चक्र.
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