माखनलाल चतुर्वेदी का संछिप्त जीवन परिचय ?
हेल्लो दोस्तों आज मैं हाजिर हूँ आपके लिए “भारतीय आत्मा” कहे जाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी के बारे में ये ऐसे महापुरुष है जिसके बारे में पढ़कर आप अवश्य गर्वान्वित महशूस करेंगे, आज मैं इनके जीवन के बारे में संछिप्त में ही सही लेकिन बहुत ही अच्छी तरीके से बताऊंगा, जिसे एकबार पढने के बाद आपको ये कभी नही भूलेगा. तो चलिए इनके बारे में पढ़ते है.
माखनलाल चतुर्वेदी का संछिप्त जीवन परिचय |
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जन्म. | 4 अप्रैल 1889 को |
स्थान. | बावई ( होशंगाबाद ) मध्यप्रदेश में. |
माता. | सुंदरी बाई. |
पिता. | नंदलाल |
शिक्षा. | जबलपुर से, अन्य सभी जैसे- संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओँ का घर से ही अध्ययन. |
विवाह. | 1904 में ग्यारसी बाई से |
कर्म-भूमि. | भारत. |
कार्यक्षेत्र. | कवि, लेखक, पत्रकार, अध्यापक. स्वतंत्रता संग्राम सेनानी. |
रचनाये. | ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ ( 1918 ई. ), माता ( 1952 ई. ), युग चरण, वेणु लो गूंजे धरा, अमीर इरादे गरीब इरादे,समर्पण, समय के पांव, चिंतक की लाचारी ,हिमकिरीटनी ( 1941 ई. ), हिमतरंगिनी ( 1949 ई.),कला का अनुवाद, मरण ज्वार तथा साहित्य देवता ( 1942 ई. ). |
पुरुष्कार. | देव पुरस्कार (1943) में हिमकिरीटनी के लिए.
साहित्य अकादमी पुरुष्कार ( 1963 ) में हिमतरंगिनी के लिए. पद्म विभूषण ( 1963 ) |
उपनाम | भारतीय आत्मा |
मृत्यु. | 30 जनवरी 1968 को |
पत्रिकाओं का सम्पादन. | प्रभा ( 1913 ), कर्मवीर ( 1919 ), प्रताप ( 1924 ) |
जेल. | 12 मई 1921 में राजद्रोह के जुर्म, 1922 में जेल से छूटे. |
मुख्यमंत्री का पद छोड़ा.
भारत की आज़ादी के बाद जब मध्य प्रदेश एक नया राज्य बना, तब सबके सामने एक चुनौती सी थी की राज्य की बागडोर किसे सौपी जाय, तब पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, पंडित रविशंकर शुक्ल, और तीसरा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा जी के नाम का पर्चा बनाकर उसे एक डिब्बे में रखकर उसे मिलाया गया, फिर उसमे से एक पर्ची निकाली गयी जिसपर पंडित माखनलाल चतुर्वेदी लिखा हुआ था, लेकिन पंडित जी ये कह कर इस प्रस्ताव को ठुकार दिया की देश के लोगों ने उन्हें एक शिक्षक के रूप में बहुत सम्मान दिया है और वो इस सम्मान को खोना नहीं चाहते है.
माखनलाल चतुर्वेदी के कुछ कवितायें.
लड्डू ले लो |
ले लो दो आने के चार लोगे खूब मज़ा लायेंगे कुछ देरी से आया हूँ मैं
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सिपाही |
गिनो न मेरी श्वास,
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वरदान या अभिशाप |
कौन पथ भूले, कि आये ! यह किरन-वेला मिलन-वेला उठ उसाँसों ने, सजन, शूल के अमरत्व पर
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बलि-पन्थी से |
मत व्यर्थ पुकारे शूल-शूल, कागों का सुन कर्त्तव्य-राग, भूखंड बिछा, आकाश ओढ़,
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वायु |
चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हवा, पत्तियों की चुटकियां झट दीं बजा, पंछियों में चहचहाट मच गई,
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फूल की मनुहार |
बिन छेड़े, जी खोल सुगन्धों को जग में बिखरा दूँगा; उषा-राग पर, दे पराग की भेंट, रागिनी गा दूँगा; छेड़ोगे, तो पत्ती-पत्ती चरणों पर बिखरा दूँगा; संचित जीवन साध कलंकित न हो, कि उसे लुटा दूँगा; किन्तु मसल कर सखे! क्रूरता– की कटुता तू मत जतला; मेरे पन को दफना कर अपनापन तू मुझ पर मत ला। |
जलियाँ वाला की बेदी |
नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार, मंदिर में था चाँद चमकता, मसजिद में मुरली की तान, गली-गली में अली-अली की गूँज मचाते हिल-मिलकर, जाओ, जाओ, जाओ प्रभु को, पहुँचाओ स्वदेश-संदेश, स्वागत है सब जगतीतल का, उसके अत्याचारों का, |
पुष्प की अभिलाषा |
चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ, चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ, चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ, मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक! मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने, जिस पथ पर जावें वीर अनेक! |
हेल्लो दोस्तों तो कैसी लगी आपको पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी के बारे में ये संछिप्त जानकारी, आप हमें नीचे कमेन्ट करके जरूर बताये और अपने दोस्तों के साथ में शेयर जरुर करें, धन्यबाद.
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