शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय : BIOGRAPHY OF SHAHEED BHAGAT SINGH.
भगत सिंह ये नाम जब हमारे कानो या फिर आँखों में पड़ता है तो पूरे शरीर में एक सिहरन सी आ जाती है हमारे रोंगटे खड़े हो जाते है या अंग्रेजी में कहे तो शरीर में GOOSEBUMPS महसूस होने लगता है.
भगत सिंह ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे जिनका नाम सुनकर अंग्रेज सर से पाँव तक काँप जाते थे, उन्होंने जो निश्चय एक बार ले लिया उसे पूरा किये बगैर वो चैन की सांस नहीं लेते थे, आज के विषय में हम उनके ही बारे में पूरे विस्तार से बताएँगे तो बने रहिये हमारे साथ.
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शहीद भगत सिंह का जन्म-स्थान और उनके माता-पिता का नाम : ( BIRTH PLACE AND PARENTS NAME OF SHAHEED BHAGAT SINGH ) ?
भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत ( जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है ) के जिला लायलपुर में बंगा नामक गाँव में 28 सितम्बर 1908 में हुआ था, इनके पिताजी सरदार किशन सिंह और इनकी माता विद्यावती कौर थी. इनके पिता और इनके चाचा दोनों लोग ‘गदर पार्टी’ के सक्रीय सदस्य थे और उस समय अंग्रेजो के खिलाफ चलने वाले आन्दोलन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन करने के कारण के कारण जेल में बंद थे.
इनके जन्म के समय भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह और इनके चाचा सरदार स्वर्ण सिंह जेल से रिहा हुए थे.जिससे खुश होकर इनकी दादी ने इनका नाम ‘भागो वाला’ रख दिया, इनकी पार्म्भिक शिक्षा गाँव के ही सरकारी स्कूल से हुई थी, और सन 1916-17 में उनका एडमिशन लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल में करा दिया गया.
बचपन से ही इनके क्रांतिकारियों और शूरवीरों की कहानिया सुनने को मिली जिससे इनके अन्दर शुरू से ही देशभक्ति और अंग्रेजो के विरुद्ध नफरत भरी हुई थी. इन्होने 14 साल की उम्र में ही सरकारी स्कूल के यूनिफार्म और किताबो को जला दिया था.
क्या भगत सिंह की शादी हुई थी :
इसका जवाब दिया जाय तो भगत सिंह ने शादी नहीं की थी उन्होंने देश की स्वतंत्रता को ही अपना दुल्हन मान लिया था, लेकिन कुछ इतिहासकार कहते है की उनके घर वालों 16 वर्ष की उम्र में उनकी शादी तय कर दी थी, इस बात से नाराज़ होकर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था.
भगत सिंह के जीवन में पड़ने वाले कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम
भगत सिंह के जीवन में कुछ ऐसे घटनाक्रम हुए जिससे उनके क्रांतिकारी जीवन में आग में घी का काम किया तो आइये जानते है उन्ही घटनाओ के बारे में.
जलियावाला बाग हत्याकाण्ड ( Jaliyawala Baag HatyaKand ).
आज किसी भारतीय को जलियावाला बाग के बारें में बताने की आवश्यकता नहीं है, अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा इतना क्रूर और इतना बड़ा नरसंहार किसी ने नहीं देखा था और न ही किसीको इसकी उम्मीद थी, वह दिन था 13 अप्रैल 1919 बैसाखी का दिन यह एक ऐतिहासिक दिन था इसी दिन 1699 में खालसा पंथ की स्थापन सिखों के दसवे और अंतिम गुरु ‘ गुरु गोविन्द सिंह’ ने किया था और लोग इसी दिन रबी की फसल काटने के बाद नए साल की खुशियाँ मनाते है.
चारों-ओर ख़ुशी और उल्लाष का माहौल था लेकिन किसे पता था की आज का दिन इतिहास में काले
अक्षरों से लिखा जायेगा. पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के करीब जलियावाला बाग में सभी लोग इकठ्ठा हुए थे जहा पर बैसाखी का मेला लगा हुआ था और वही पर ‘रौलेट एक्ट’ के विरोध में एक सभा आयोजित की गयी थी जिसकी मांग थी की आन्दोलन के दो प्रमुख नेताओ ‘सैफुद्दीन किचलू’ और ‘सत्यपाल’ को कालापानी की सजा से रिहा करने की मांग हो रही थी.
तभी जनरल डायर नामक एक अंग्रेजी अफसर अकारण ही उन शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलिया चलवाने लगा जिसमे लगभग 400 लोगों की मृत्यु हुई और लगभग 2000 लोग घायल हुए, इस नरसंहार के समय भगत सिंह की उम्र 14 वर्ष की थी से भगत सिंह के मन में बहुत गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने कालेज की पढाई छोड़कर नौजवान भारत सभा की स्थापन की.
चौरी-चौरा हत्या काण्ड ( Chauri-Chaura Kaand).
महात्मा गांधी के द्वारा उस समय विदेशी सामानों का बहिष्कार करने का आवाहन चल रहा था, उसी आन्दोलन को आगे बढाने के लिए 4 फ़रवरी 1922 को शनिवार के दिन गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में आन्दोलनकारियों का एक जत्था भोपा बाज़ार से एक जुलुस निकाल रहे थे, उसी को रोकने के लिए पुलिस वालों ने अपना बल प्रयोग किया और एक सिपाही ने एक जुलुसकारी के सर की टोपी को गिराकर अपने पैरों से कुचलने लगा, इसी वजह से वहां झड़प हुई और फिर पुलिस वालों की तरफ से फायरिंग शुरू हो गयी जिसमे 11 आन्दोलनकारी की मृत्यु हुई कई घायल हो गए,
लेकिन जब पुलिस वालों की गोली समाप्त हुई तो फिर से भीड़ उग्र हो गयी और सभी को दौड़ा लिया जिसे पुलिसकर्मी थाने में जाकर छिप गए और फिर आन्दोलनकारियों ने केरोसिन का तेल और मूंज इत्यादि लेकर थाने को आग लगा दिया जिसमे 23 पुलिसकर्मियों की जान चली गयी, इसी घटना से छुब्ध होकर गांधी जी ने अपना असहयोग आन्दोलन भी वापस ले लिया.
गाँधी जी के अपने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने और उन किसानो के लिए न खड़े होने से भगत सिंह का मन खिन्न हो उठा और वह गांधी जी के अहिंषा के मार्ग को छोड़कर चंद्रशेखर आज़ाद के गदर दल का हिस्सा बन गए.
काकोरी की घटना ( Kakori KI Ghatna )
क्रांतिकारियों के द्वारा चलाये जा रहे अभियान के लिए धन की अत्यधिक आवश्यकता थी, शाहजहांपुर में हुई एक बैठक में रामप्रसाद बिस्मिल और साथियों ने सरकरी खजाना लूटने की रणनीति बनाई, जिसके लिए 9 अगस्त 1925 को लखनऊ जिले के काकोरी से छूटे लखनऊ-सहारनपुर आठ डाउन पसेंजेर ट्रेन को राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी के द्वारा चेन खीचकर रोका गया और चंद्रशेखर आज़ाद तथा अन्य साथियों के द्वारा उस में मौजूद सरकारी खजाने को लूट लिया गया.
इस लूट में अहमद अली नामक एक यात्री की जान भी चली गयी थी, फिर अंग्रेजी हुकूमत ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएसन के 40 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिसमे से रामप्रसाद विस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, अशफाकउल्ला खा को फांसी की सजा तथा 16 अन्य को आजीवन कारावास की सजा मिली.
इस घटना ने भगत सिंह को अंदर से झकझोर दिया और उन्होंने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का विलय चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएसन में कर दिया और उसको एक नया नाम दिया हिन्दुस्तान शोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएसन इस संगठन का उद्देश्य सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले युवावो को तैयार करना था.
लाला लाजपत राय की मृत्यु और भगत सिंह का प्रतिशोध ( Lala Lajpat Rai )
देश भर में साइमन कमिसन के विरुद्ध भयानक प्रदर्शन हो रहे थे उसी के तहत 30 अक्टूबर 1928 लाहौर में साइमन कमिसन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे और वही पर हुए लाठीचार्ज से इनको बहुत चोट आई और अंतत 17 नवम्बर 1928 को इनका देहांत हो गया. लाला जी ने कहा भी था की मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी इस घटना से भगत सिंह बहुत ही आहत हुए और उन्होंने पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट सांडर्स की हत्या करने का प्लान बनाया.
योजना के अनुसार 17 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु लाहौर कोतवाली के सामने टहलने लगे जयगोपाल अपनी साईकिल ठीक करने के बहाने बैठे हुए थे और पास के ही एक कालेज में चंद्रशेखर आज़ाद उन सबकी सुरक्षा के लिए अपनी पोजीसन लिए हुए थे, करीब सवा चार बजे वह अपनी गाडी से आया उसके आते ही राजगुरु ने एक गोली मारी जिससे वह गिर पड़ा और फिर भगत सिंह ने 3-4 गोली मारकर उसका काम तमाम कर दिया और इस तरह से उन लोगों ने मिलकर लालाजी के मौत का बदला ले लिया.
दिल्ली केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेकने की योजना :
बम फेकने की इस योजना जब बनी तब भगत सिंह का नाम ये कार्य करने के लिए नही फाइनल हुआ था, लेकिन बाद में काफी तर्क और वाद-संवाद के बाद जाकर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को ये कार्य करने का जिम्मा सौपा गया.
उस समय अंग्रेजी हुकूमत इतना अत्यधिक हावी था की उनके आगे किसी भारतीय पूंजीपति या फिर मजदूर वर्ग किसीकी भी नहीं चलती थी, इन्ही सब व्याप्त कुरीतियों के कारण अंग्रेजी हुकूमत के कान खड़े करने के लिए ही बम फेकने की योजना बने गयी. उन्होंने कहा था की बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत पड़ती है.
अपने तय समय 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में चल रही एक भारतीय विरोधी कानून का प्रस्ताव पास होने जा रहा था, तब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों मिलकर एसेम्बली में बम फोड़ा वो भी ऐसी जगह जहाँ कोई बैठा नहीं था, ये लोग नहीं चाहते थे की किसी को कोई नुकसान पहुचे, जब पूरी असेम्बली धुंए से भर गयी फिर भी ये लोग नहीं भागे इसके बजाय इन्होने वहां अपने द्वारा लाये गए पर्चे फेकने लगे. और इन्कलाब जिंदाबाद, साम्रज्यबाद मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे.
अगर ये लोग चाहते तो वहां से भाग सकते थे लेकिन इन्होने ये धमाका उस बहरी सरकार को सुनाने के लिया किया था, फिर कुछ देर बाद पुलिस आई और इनको पकड़कर ले गयी और दिल्ली एक जेल में बंद कर दिया उसके कुछ दिन बाद उन्हें लाहौर जेल में शिफ्ट किया गया.
जेल के दिन और भूख़ हड़ताल
देशभर से क्रांतिकारियों को पकड़ा जाने लगा उनके अन्य दो साथी राजगुरु और सुखदेव के उपर भी देशद्रोह का मुकदमा चला उन सभी के ऊपर लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से मुकदमा चला और 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गयी, भगत सिंह करीब 2 साल तक जेल में रहे वहा रहकर भी उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन को नहीं छोड़ा था, वे अपने लिखे पत्र के माध्यम से लोगों में स्वतंत्रता आन्दोलन की आग जलाते रहते थे, वे कहते थे की मजदूरों का शोषण करने वाला अगर एक भारतीय है तो वे उसके भी शत्रु है.
एक बार जेल में उनके सभी साथियों के द्वारा जेलर की किसी बात पर बहस हो जाने और उनकी बात न मानने के लिए वे लोग भूख़ हड़ताल पर बैठ गए, और 63वे दिन उनके एक साथी यतीन्द्र दास की मृत्यु हो गयी उनके इस भूख़ हड़ताल का पुरे देश में जबरदस्त समर्थन मिला था.
भगत सिंह को कौन सी धारा के तहत सजा दी गयी :
26 अगस्त 1930 को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 129 व 302, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 (F) और धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया गया और 7 अक्टूबर 1930 को 68 पेज का विस्तृत निर्णय देकर इन तीनो लोगों को फांसी की सजा दी गयी और धारा 144 लागू कर दिया गया.
फांसी से पहले लेनिन की किताब पढ़ी :
भगत सिंह किताब पढने के बहुत शौक़ीन थे उन्होंने वे कई लेखको के किताब पढ़ते थे, उन्होंने अपने मित्र जयदेव से लेनिन की किताब ‘ लेफ्ट विंग ‘ और कम्युनिजम और सिंक्लेयर की ‘ द स्पाई ‘ भेजने के लिए कहा था, अपनी फांसी से कुछ घंटे पहले तक उन्होंने लेनिन की किताब पढ़ी थी.
फांसी की तैयारी :
भगत सिंह तथा इनके साथियों के फांसी का समय 24 मार्च 1931 तय थी लेकिन देशभर में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन और इनकी लोकप्रियता के कारण इनको 23 मार्च 1931 को ही फांसी देने का निर्णय किया गया, शाम को लगभग 5 बजे के बाद फांसी देने की पूरी प्रक्रिय शुरू की गयी तीनो क्रांतिकारियों को अपने-अपने बैरक से निकाला गया.
उस समय भगत सिंह लेनिन की किताब पढ़ रहे थे, और जाते हुए उन्होंने कहा की एक रुको एक क्रांतिकारी दुसरे क्रांतिकारी से अलविदा तो कह ले. उसके बाद उन सबको नहलाकर काले कपडे पहनाये गए और और उनका वजन किया गया जो पहले से ज्यादा हो गया था, उसके बाद तीनो क्रांतिकारी फांसी के फंदे की ओर गाते हुए चले –
मेरा रंग दे बसंती चोला, माय रंग दे .
और सभी कैदियों के बैरक से भी उनके इसी गीत के आवाज आ रही थी, अपनी मौत को सामने देखकर भी वे लोग मुस्कुरा रहे थे, और 7 बजकर 33 मिनट पर उन तीनो को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया, और वो तीनो क्रांतिकारी सदा के लिए अमर हो गए.
अंग्रेजो को किस बात का डर था :
फांसी के बाद भी अंग्रेज सिपाही इतना डरे हुए थे की उन्होंने उनकी लाशों को पीछे की दीवार तोड़कर सतलज नदी के किनारे ले गए और उनके छोटे-छोटे टुकड़े करके उन्हें जलाने लगे, उन्हें डर था की अगर किसी को ये बात पता चली तो पुरे देश में आन्दोलन छिड़ जायेगा, लेकिन उनके हजार कोशिशों के बावजूद कुछ ग्रामीण ने उन्हें देख लिया और वे सब उनके पीछे आये उन्हें आता देखकर सिपाहियों ने उनके लाशों को बोरे में भरकर नदी में फेक दिया गया, और वहां से भाग खड़े हुए, बाद में ग्रामीणों ने उनका अंतिम संस्कार विधिवत तरीके से किया उनको श्रधांजलि देने के लिए 3 किलो मीटर लम्बी लाइन लगी थी.
भगत सिंह का व्यक्तित्व :
भगत सिंह देश में भाषा, जाति, धर्म के आधार पर भेदभाव से बहुत दुखी थे, वे किसी कमजोर और असहाय पर हुए जुल्म का बहुत ही विरोध करते थे फिर चाहे वो जुल्म किसी भारतीय ने किया हो या अंग्रेज ने, भगत सिंह को जब फांसी हुई तो सब ने कहा की माफ़ी मांग लो शायद जान बच जाय लेकिन उस वीर ने कहा की क्रांतिकारी मरने के लिए ही पैदा होता है, और उसके मरने क्रान्ति और भी मजबूत हो जायेगा.
चंद्रशेखर आज़ाद से मुलाकात के समय उन्होंने जलती मोमबत्ती हाथ में लेकर कसम खाई थी की उनकी ज़िन्दगी देश के लिए कुर्बान होगी और आखिर हुआ भी ऐसा ही वे कहते थे की सुधार करना किसी बूढ़े आदमी के हाथ में नहीं है, उसके लिए किसी युवा का परिश्रम और उसका उस काम के प्रति पागलपन ही सुधार ला सकता है.
शहीद भगत सिंह ने सच ही कहा था की किसी इंसान को मारना आसान है लेकिन उसकी सोच को नहीं. आदमी का जीवन तो क्षण भर का है लेकिन उसकी सोच उसे अमर कर देती है.
कुछ महत्वपूर्ण सवाल :
1 – भगत सिंह का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
पंजाब प्रान्त के जिला लायलपुर में बंगा नामक गाँव में 28 सितम्बर 1908.
2 – भगत सिंह की बहन का नाम क्या है ?
प्रकाश कौर
3 – भगत सिंह के माता-पिता का नाम ?
सरदार किशन सिंह, विद्यावती
4 – शहीद भगत सिंह का नारा क्या था ?
इन्कलाब जिंदाबाद
5 – भगत सिंह को फांसी किस जेल में दी गयी ?
लाहौर के सेन्ट्रल जेल में 23 मार्च 1931 को शाम 7:33.
6 – भगत सिंह के गुरु कौन थे ?
करतार सिंह सराभा
7 – भगत सिंह के फांसी के समय उम्र क्या थी ?
23 वर्ष
8 – बलिदान दिवस कब मनाया जाता है ?
23 मार्च को ( भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव के बलिदान के रूप में )
9 – भगत सिंह को फांसी कब हुई थी ?
23 मार्च 1931
तो दोस्तों कैसी लगी आपको हमारी शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय : BIOGRAPHY OF SHAHEED BHAGAT SINGH. के बारे में ये जानकारी अगर आपका कुछ सुझाव हो तो आप नीचे कमेन्ट करके जरूर बताये.
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