स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और विचार : Biography of Swami Vivekanand and his Quates
हेल्लो दोस्तों नमस्कार स्वागत है आप सभी का हम बात करने वाले है. भारत के एक ऐसे महापुरुष जिसने पुरे विश्व को ये बतलाया की अगर पूरे विश्व में किसी देश के पास भी विश्वगुरु बनने की क्षमता है तो वो सिर्फ भारत देश में है और कहीं नहीं, जिन्होंने पूरे विश्व को हिन्दू धर्म के प्रति जागरूक कराया और बताया की हम ऐसे धर्म के प्रति आस्था रखते है जिसने सभी धर्मो और सम्प्रदायों का आदर और सम्मान किया है जिसने हमेशा सर्वधर्म समभाव की भावना रखी हुई है.
हम ऐसे महापुरुष की बात कर रहे है जिसको शिकागो सम्मलेन में बोलने का अवसर नहीं दिया जा रहा था, लेकिन जब अवसर दिया गया और वो बोला तो उसके सिर्फ मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों बोलने पर ही पूरे सभा ने 5 मिनट तक ताली बजाई.अब तक तो आप सब समझ गए होंगे की मैं किसकी बात कर रहा हूँ, जी हाँ मैं स्वामी विवेकानंद जी की बात कर रहा हूँ, तो चलिए ज्यादा देरी न करते हुए हम उनके पुरे जीवन के बारें में बात करते है.
स्वामी विवेकानन्द का जन्म कब और कहा हुआ था तथा उनका प्रारंभिक जीवन :
विवेकानंद का बचपन
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा :
|
ब्रम्ह समाज से जुड़ाव
गुरु के लिए आदर और समर्पण का भाव :
ये भी पढ़े – तुलसीदास का जीवन परिचय: Biography of Tulsidas
शिकागो में विवेकानंद जी का ऐतिहासिक भाषण :
जब स्वामी विवेकानंद जी अमेरिका पहुचे तो वहां के लोगों ने उनका पहनाव जो की गेरुवा वस्त्र था उसे देखकर उनके बारे में अभद्र भाषा बोलने लगे वे लोग भारतीयों को हीन भावना से देखते थे, पहले तो उन्हें उस सम्मलेन में बोलने ही नही दिया जा रहा था, लेकिन एक प्रोफ़ेसर के माध्यम से जब उन्हें बोलने का अवसर मिला तो उन्होंने बता दिया की भारत के लोग कैसे है और वहां की शिक्षा कैसी है. शिकागो में उनका भाषण –
|
मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों,
आपने जिस उत्साह और स्नेह के साथ हमारा स्वागत किया हैं मैं उसके प्रति आप सभी का आभार प्रकट कर रहा हूँ, मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।
मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन सभी वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद प्रकट करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व महसूस करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।
मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व हो रहा हैं कि हमने अपने हृदय में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:
रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्। नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार हे प्रभो! भिन्न-भिन्न रुचि के अनुसार विभिन्न टेढ़े-मेढ़े अथवा सीधे रास्ते से जानेवाले लोग अन्त में तुझमें ही आकर मिल जाते हैं।
यह सभा, जो अभी तक आयोजित सर्वश्रेष्ठ पवित्र सम्मेलनों में से एक है स्वतः ही गीता के इस अद्भुत उपदेश का प्रतिपादन एवं जगत के प्रति उसकी घोषणा करती है:
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्। मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥
अर्थात जो कोई मेरी ओर आता है चाहे किसी प्रकार से हो मैं उसको प्राप्त होता हूँ। लोग भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करते हुए अन्त में मेरी ही ओर आते हैं।
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी हैं। वे पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं व उसको बारम्बार मानवता के रक्त से नहलाती रही हैं, सभ्यताओं को ध्वस्त करती हुई पूरे के पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही हैं। यदि ये वीभत्स दानवी शक्तियाँ न होतीं तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता। पर अब उनका समय आ गया हैं और मैं आन्तरिक रूप से आशा करता हूँ कि आज सुबह इस सभा के सम्मान में जो घण्टा ध्वनि हुई है वह समस्त धर्मान्धता का, तलवार या लेखनी के द्वारा होनेवाले सभी उत्पीड़नों का तथा एक ही लक्ष्य की ओर अग्रसर होने वाले मानवों की पारस्पारिक कटुता का मृत्यु निनाद सिद्ध हो।
उनके इस ऐतिहासिक भाषण ने वहां के लोगों में भारत और वहां के लोगों के प्रति एक सम्मान की भावना जागृत कर दी, और बहुत सारे लोग उनके अनुयायी हो गए और उनके दिखाए रास्ते पर चलने लगे.
स्वामी विवेकानंद के शिक्षा का दर्शन:
स्वामी विवेकानंद के शिक्षा का सिद्धांत :
- बालक और बालिकाओ को समान शिक्षा देनी चाहिए उनमे किसी तरह का भेद-भाव नहीं करना चाहिए.
- शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य के चरित्र मन और बुद्धि तीनो का विकास करती हो.
- धार्मिक शिक्षा पुस्तकों से ज्यादा आचरण और संस्कार के द्वारा देनी चाहिए.
- छात्र और शिक्षक का सम्बन्ध जितना नजदीक होगा उतना ही गहरा प्रभाव पड़ेगा.
- देश की आर्थिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलने के लिए तकनीकी शिक्षा पर जोर दिया जाय.
- शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य को जीवन पर्यंत सभी कठिनाइयों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता हो.
स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल बचन :
- हम जो बोते हैं वही काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं.
- सत्य को हजारों तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी वह एक सत्य ही होगा.
- विवेकानंद जी ने कहा था चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो.
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते.
- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो.
- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है.
- बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है.
- विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं.
- खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है.
- पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है.
- एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है.
- एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ.
- उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता.
- हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है.
- एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं.
स्वामी विवेकानंद जी की कृतियाँ :
- कर्म योग – 1896
- राज योग – 1896
- Vedant Philosophy 1896
- Lectures from Colombo to Almora 1897
- वर्तमान भारत ( बांग्ला भाषा ) 1897
- My Master 1901
- ज्ञान योग 1899
- Seeing beyond the circle (2005)
स्वामी विवेकनद जी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण किस्से :
- जब स्वामी जी को ट्रेन के डिब्बे में सोना पड़ा : ये बात शिकागो भाषण से पहले की है जब स्वामी विवेकानंद जी शिकागो सम्मलेन से 4-5 दिन पहले पहुच गए, उस समय अमेरिका में बहुत भीषण ठण्ड पड़ रही थी, और वहां के संसाधन भी बहुत महंगे थे, वहां पहुचते-पहुचते स्वामी जी के पास पैसे नाम मात्र के बचे थे, स्वामी जी बताते है की वहां के लोगो ने उनके पहनावे से उन्हें चोर समझते थे और उन्हें भगा दे रहे थे, वे कहते थे की वो चार पांच दिन मैंने मालगाड़ी के डिब्बे में सो कर गुजारा जब भी मेरा मन विचलित होता मैं अपने देश वासियों को याद करता जिनके सम्मान और प्यार के नीचे मै दबा हुआ था. और उस भाषण के बाद तो सारे अमेरिका में उनको जानने वाले हो गए थे.
-
एक औरत जो उनसे शादी करना चाहती थी : एक बार की बात है स्वामी जी अपने सभी भक्तों से घिरे हुए थे और उनसे बात कर रहे थे तभी एक अंग्रेज महिला उनके पास आकर उनसे बोली की मै आपसे शादी करना चाहती हूँ जिससे आप ही की तरह मुझे एक विद्वान् पुत्र की प्राप्ति हो ये सुनकर वहां उपस्थित सब लोग चकित रह गए, तब स्वामी जी ने कहा की देवी अगर आपको सिर्फ मेरे जैसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा है तो वो बिना विवाह के भी संभव है, इसपर वो स्त्री बोली वो कैसे तो स्वामी जी ने कहा की आप मुझे अपना पुत्र मान लो इससे आपकी पुत्र प्राप्ति की इच्छा भी पूरी हो जाएगी और मेरा सन्यासी धर्म भी बचा रह जायेगा, वहां उपस्थित सभी लोग स्वामी जी के इस जवाब से उनकी बुद्धि और सोचने की क्षमता का बखान करने लगे.
ये भी पढ़े – Nelson Mandela Biography In Hindi : नेल्सन मंडेला का जीवन परिचय.
Pingback: माखनलाल चतुर्वेदी का संछिप्त जीवन परिचय Hindi Lekh %
सर्वप्रथम .. एक शानदार लेख के लिए बधाई स्वीकार करें .. यूँ स्वामी जी के जीवन परिचय से ज्यादातर लोग परिचित हैं और वह आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध भी है .. लेकिन अगर इंटरनेट पर आभाव है तो वह है सही जानकारी का .. आपने न सिर्फ सही जानकारी को पाठकों के सम्मुख रखा है बल्कि लेख को सुन्दर शब्दों से भी पिरोया है .. यही एक लेखक की विशेषकर ब्लॉगर की खासियत होती है .. आशा है आप आगे भी इसी तरह से महान व्यक्तित्वों का जीवन परिचय युवाओं के सम्मुख रखते रहेंगे और उन्हें प्रेरित करते रहेंगें …
शुभकामनाये ..
thanks, interesting read
_________________
фонбеттің балама мекен-жайына кіру
I like the efforts you have put in this, regards for all the great content.
Thanks for the post
I have not checked in here for some time since I thought it was getting boring, but the last few posts are great quality so I guess I’ll add you back to my daily bloglist. You deserve it my friend 🙂
very interesting, but nothing sensible
Very well presented. Every quote was awesome and thanks for sharing the content. Keep sharing and keep motivating others.