Jallianwala Bagh Massacre: जलियावाला बाग भारतीय इतिहास की ऐसी घटना जिसके जख्म अभी तक ताजा है.
Jallianwala Bagh Massacre :- जलियावाला बाग नरसंहार की घटना ऐसी ऐतिहासिक घटना है जिसको किसी भी शब्द में बयान नहीं किया जा सकता है आज 13 अप्रैल को इस घटना के 103 वर्ष पूरे हो गए, अंग्रेजी हुकूमत द्वारा ऐसी वीभत्स वारदात को अंजाम दिया गया जिसका किसी को कोई अनुमान नहीं था.
पंजाब के अमृतसर जिले में स्थित स्वर्ण मंदिर के पास एक बहुत बड़ा बाग़ है जिसे जलियावाला बाग़ के नाम से जाना जाता है, 13 अप्रैल 1919 को स्वराज्य के समर्थन में और रालेट एक्ट के विरोध में तथा अपने देश को आज़ाद कराने के लिए लोगों का बहुत बड़ा जमवाड़ा उपस्थित था उसमे लगभग कई हजार महिला. पुरुष, और बच्चों ने भाग लिया था. सब लोग शान्ति पूर्ण रूप से धरने पर बैठे थे.
लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसीने कोई कल्पना भी नहीं की थी वहां पर उपस्थित जनरल डायर ने उन निहत्थे और मासूम लोगो पर अंधाधुंध गोलिया बरसवानी शुरू कर दी, वहां से बच कर भाग निकलने का सिर्फ एक ही रास्ता था जो बहुत ही सकरा था, कुछ गोलियों से तो कुछ भीड़ में गिर कर कुचलने से तो कुछ लोग वहां पर मौजूद एक कुंए में कूदकर अपनी जान बचाने की कोशिश करते हुए मारे गए, उस भयानक त्रासदी में कई हजार लोग मारे गए लेकिन ब्रिटिश गवर्नमेंट ने जब उसकी छानबीन करायी तो उन्होंने सिर्फ 379 लोगो के मरने की पुष्टि की, जो सरासर गलत थी.
क्यों हुआ था जलियावाला बाग़ ?
यह घटना कोई आम घटना नहीं थी इस घटना में पूरे परिवार के परिवार उजड़ गए उनकी लाशों को कोई कन्धा देने वाला नहीं बचा था उनके घरों में, आखिर ये घटना हुई क्यों थी और इसके पीछे क्या कारण था आइये जानते है.
13 अप्रैल 1919 के दिन जलियावाला बाग़ में ब्रिटिश सरकार के रालेट एक्ट के विरोध में और दो नेताओ सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू के गिरफ्तारी के लगभग हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे और कई सौ लोग वैसाखी का मेला देखने के लिए आये हुए थे और जनसभा को सुनकर उसमे शामिल हो गए, शहर में पहले से ही कर्फ्यू लगा हुआ था उस पर अंग्रेजी सरकार को सन 1857 की क्रान्ति भी ध्यान में था जहाँ पर एक छोटे से विवाद ने अंग्रेजी हुकूमत के कब्र की नीव रखीं थी.
कुछ भी करके सरकार को इस आयोजन को सफल नहीं होने देना था, जब कुछ नेता लोग वहां पर मौजूद एक छोटे से टीले पर खड़े होकर भाषण दे रहें थे तभी वहां पर जनरल डायर ने पहुच कर बिना किसी चेतावनी के लोगों पर गोलियां चलवा दी और 10 मिनट तक लगातार गोलिया चलती रही लोगों की चीख पुकार मचती रही लोग मरते रहे. कुल 1650 राउंड गोलियां चली थी. अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची, जबकि जलियाँवाला बाग़ में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जबकि अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुएउस समय पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर थे.
जलियावाला बाग़ ( Jallianwala Bagh Massacre ) का बदला किसने लिया ?
जलियावाला बाग़ नरसंहार का बदला तो सारा देश चाहता था, पूरे देश अंग्रेजी हुक्मरान के खिलाफ आक्रोश भरा हुआ था उनमे से ही एक क्रांतिकारी उधम सिंह ने ब्रिटिश सरकार को सबक सिखाने के लिए जनरल डायर को मारना चाहते थे लेकिन 1927 में दिल का दौरा पड़ने से उसका निधन हो गया, जिसके बाद उधम सिंह ने लन्दन जाकर 13 मार्च 1940 को लंदन कैक्सटन हाल में माइकल डायर के ऊपर 6 राउंड फायर किया जिसमे से उन्हें दो गोलिया लगी और उसकी मृत्यु हो गयी, उधम सिंह को पकड़ कर 31 जुलाई 1940 को फांसी पर लटका दिया गया, लेकिन उस अमर बलिदानी ने अपना काम पूरा कर दिया था, इस तरह से जलियावाला बाग़ का बदला पूरा हुआ और अंत में उसके 7 साल बाद ही देश को आज़ादी मिल गयी.
जलियावाला बाग़ का देश के लोगों पर क्या फर्क पड़ा ?
इस भीषण नरसंहार का पूरे देश पर प्रभाव पड़ा और बहुत सारे युवा स्वराज्य के समर्थन में आकर देश के लिए आन्दोलन करने लगे, नर्म दल के नेता भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे और 1920 हुए कई क्रांतिकारी घटनाओं में जलियावाला का रोष और गुस्सा व्याप्त था, भगत सिंह , चंद्र्शेखर आज़ाद इत्यादि क्रांतिकारियों ने अपने-अपने दल में बहुत सारे युवाओं को भारती कर लिया था. और सभी एक साथ में स्वराज्य प्राप्ति के लडाई लड़ते रहे.