Kano Jigoro | कानो जिगोरो
कानो जिगोरो ( Kano Jigoro ) ये वही व्यक्ति है जिन्हें बचपन बच्चे इनके कमजोर और छोटे कद के होने की वजह से अक्सर चिढाते थे. यह अपनी ज़िन्दगी से बहुत निराश थे क्योंकि कोई भी बच्चा यह नही चाहता की लोग उसे चिढाये या फिर उसका मजाक बनाये, लेकिन कानो के साथ आये दिन ऐसा होता था. तब उन्हें उनके एक रिश्तेदार ने ‘जुजुत्सू’ के बारे में बताया और कहा की वहां पर छोटे कद काठी वाले लोगों को ज्यादा महत्व दिया जाता है.अपने उस रिश्तेदार की बात मानकर उन्होंने उस खेल में भाग लिया और उसी खेल से ‘जूडो’ का विकास किया.
गूगल डूडल ( google doodle ).
Kano Jigoro जुडो के जन्मदाता है जिनके जन्म 28 अक्टूबर 1860 को गूगल ने अपने साईट पर उनका डूडल बनाकर उनके 161वें जन्मदिन को उन्हें समर्पित किया जहाँ पर आप देखेंगे उनके जीवन से जुडी जानकरिया जो की बहुत अच्छे तरीके से गूगल ने बनाया है. कैसे उन्हें अपने प्रतिद्वंदी से हारते हुए दिखाया गया है और अगले फ्रेम में उन्हें अपने प्रतिद्वंदी को जमीन पर गिराकर हराते हुए दिखाया गया है. आज हम उसी महान व्यक्ति के बारे में जानेंगे जिसकी वजह से जुडो का अस्तित्व दुनिया में आया.
कोई भी व्यक्ति तब नहीं हारता जब वह किसी से हार जाय, वह हारता तब है जब वह अपनी गलतियों से सीख लेकर दुबारा उसके सामने खड़ा होने से डरता है. आज हम ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में बात करने जा रहे है जिसने अपनी गलतियों से सीखा और फिर अपने उसी प्रतिद्वंदी को हराया जिससे वह कभी हारा था.
कानो जिगोरो का जन्म ( Birth Place Of Kano Jigoro ).
28 अक्टूबर 1860 को जापान के मिकेज में जन्मे Kano Jigoro बचपन से बहुत दुबले-पतले और सामान्य कद-काठी के थे, इनके पिता कानो जिर्सुकू ( मरिशिबा जिर्सुकू ) के गोद लिए हुए पुत्र थे कानो जिगोरो के पिता ने अपने परिवार के व्यावसाय को चुनने के बजाय उन्होंने एक पुजारी का काम करना अधिक पसंद था.कानो जब 9 वर्ष के थे तभी इनके माताजी जी निधन हो गया और इनके ऊपर से ममता की छाया उठ गया
वे जब 11 वर्ष के थे तब उनके पिता ने उन्हें साथ में लेकर टोक्यो चले गए और वही पर रहने लगे. वे जिस स्कूल में पढ़ते थे उस स्कुल के बच्चे उनके कमजोर कद-काठी ( लम्बाई 5 फुट 2 इंच, तथा वजन 41 किलो था ) की वजह से उनको अक्सर चिढाया करते थे और उनका मजाक बनाया करते थे, लोगों के इस व्यवहार से कानो बहुत दुखी रहते थे.
रिश्तेदार की सलाह.
कानो के एक रिश्तेदार ने जब उनसे उनके उदासी का कारण पूछा तो कानो ने सबकुछ सही – सही बता दिया, इस पर उनके रिश्तेदार ने उनको ‘जुजुत्सू’ खेल के बारें में बताया उन्होंने बताया की इस खेल में छोटे कद-काठी वाले व्यक्ति की बहुत वरीयता मिलती है, तो तुम उस खेल को सीख सकते हो. अपने पिता की स्वीकृति न होते हुए भी Kano ने उस खेल को सीखना जारी रखा.
उनके उस खेल के प्रति बढ़ते जूनून को देखकर उनके पिता ने भी उन्हें इस खेल को खेलने की अनुमति दे दी, जिसके बाद उन्होंने और म्हणत और लगन से उस खेल के बारीकियों को सीखने लगे, और बहुत ही जल्द उस खेल में निपुण हो गए.
जुडो की उत्पति.
जब Kano Jigoro टोक्यों विश्वविद्यालय में पढाई कर रहे थे तब उन्हें एक ऐसा व्यक्ति मिल गया जिसने उन्हें ‘जुजुत्सू और समुराई फुकुदा हाचिनोसुके’ सिखाया और उसमे इन्हें एकदम पारंगत कर दिया. कानो के वरिष्ठ खिलाड़ी को हराने में बहुत दिक्कत होती थी या फिर यूँ कहे की उस व्यक्ति इनको कई बार हराया था.
उस व्यक्ति को हारने के लिए कानो ने एक मैच में जुजुत्सू में सिखाये गएँ दांव-पेंच के अलावा कुछ एनी तरीके का खेल का प्रदर्शन करने लगे और उन्होंने इसमे कामयाबी भी पायी उसने उस न हारने वाले व्यक्ति को धूल चटा दिया और वहीँ से उन्होंने ‘जूडो’ की शुरुवात की.
कानो जिगोरो का जीवन ( Kano Jigoro ).
1882 में उन्होंने स्नातक की डिग्री प्राप्त की और उसके कुछ महीने बाद ही एक प्रोफ़ेसर के र्रोप में काम करना शुरू कर दिया. सन 1882 में ही उन्होंने खुदा का मार्शल आर्ट जिम ( डोजो ) खोला और उसमे बहुत ही लगन और परिश्रम से सबको सिखाने लगे सन 1893 में ये जिम उन्होंने महिलाओ के लिए भी खोल दिया.
उन्होंने अपने जीवन को एक शिक्षक के रूप में ही रखा वह चाहते तो उन्हें कोई न कोई सरकारी नौकरी जरुर मिल जाती क्योंकि उनके पिता का कुछ ऊँचे लोगों से पकड़ था. लेकिन उन्होंने अपने जीवन के तमाम वर्ष जुडो को सिखाने में और एक शिक्षक के भाति जीवन जीने में लगा दिया. उनकी सादगी इस बात से पता चलती है की उन्होंने शिक्षा मंत्रालय में मिले पद ( 1891 ) को कुछ समय के बाद छोड़ दिया.
1909 में उन्हे अन्तर्राष्ट्रीय अलोम्पिक समित का सदस्य नियुक्त किया गया जो की पहले एशियाई सदस्य भी थे.उन्होंने ओलम्पिक खेलो 1928 (एम्स्टर्डम), 1932 (लॉस एंजिलस) और 1936 (बर्लिन) में जापान का प्रतिनिधित्व किया और अपने कुशल वक्ता होने की वजह से लोगों में एकात्मकता का बोध कराया. सन 1960 अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक संघ ( IOC ) ने जुडो को स्थायी मान्यता दे दी. राइजिंग सन का ऑर्डर, गोल्ड रिबन विथ नेक रिबन, 1938 (जापान) के इस पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा गया है.
Kano Jigoro की मृत्यु. 4 मई 1938 ( Death Of Kano Jigoro ).
कानो जिगोरो की मृत्यु 4 मई 1938 ( 77 वर्ष की उम्र ) में हो गयी थी,इनके मृत्यु का कोई स्पष्ट निष्कर्ष नही है कुछ लोग कहते है की इनको भोजन में विषाक्त पदार्थ मिलाकर इनको मार दाल गया था, कुछ लोग इनके निमोनिया से मरने को सही मानते है. क्योंकि जब इनकी मृत्यु हुई तब यह एक जहाज पर थे इसलिए इनके मरने का कोई सही प्रमाण हासिल नही है, यदपि अधिकतर लोग इनके निमोनिया से मरने की वजह को सही मानते है.कानो जिगोरो एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने निराश जीवन में अपने कड़े मेहनत और परिश्रम के चलते अपने नाम को इस इतिहास में हमेशा के लिए अमर कर दिया.