तुलसीदास का जीवन परिचय: Biography of Tulsidas

तुलसीदास का जीवन परिचय: Biography of Tulsidas 

तुलसीदास का जीवन परिचय: Biography of Tulsidas
तुलसीदास का जीवन परिचय: Biography of Tulsidas

 

जन्म

1554 राजापुर, बांदा, उत्तरप्रदेश.

मृत्यु

मृत्यु – 1680 काशी, उत्तरप्रदेश.

पिता

आत्मा राम दूबे.

माता

हुलसी देवी.

पत्नी

रत्नावली पाठक.

गुरु

संत नरहरी दास.

प्रमुख रचना

 

रामचरितमानस, गीतावली, विनयपत्रिका, रामलला नहछू, जानकी मंगल, इत्यादि |

जीवन परिचय – 

परमपूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म विक्रम संवत 1554 में उत्तर-प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ. कुछ विद्वान् इनका जन्म स्थान एटा जिले के सोरों नामक ग्राम में मानते है, लेकिन अधिकांश का मत बांदा जिला के राजपुर नामक ग्राम है. इनके जन्म को लेकर एक दोहा प्रचलित है की

पंद्रह सौ चौवन विसे, कालिंदी के तीर |

सावन शुक्ल सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर ||

इसका अर्थ – कालिंदी नदी के किनारे ( बसे गाँव ) में विक्रम संवत 1554 में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में सप्तमी के दिन गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ.

कई विद्वानों का मत है की गोस्वामी तुलसीदास जी ने जब जन्म लिया तब ये रोये नहीं इनके मुख से राम नाम शब्द का उच्चारण हुआ जिससे इनका नाम ‘रामबोला’ पड़ गया, तथा जन्म के दुसरे ही दिन इनकी माता का निधन हो गया तथा इनके पिता ने और किसी अनिष्ट घटना घटने से पहले इनका परित्याग कर दिया. 

कुछ विद्वानो का मत है की इनका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ इनके पिताजी का नाम आत्माराम दूबे तथा माता का नाम हुलसी देवी था. इनका परिवार बहुत ही निर्धन था और भिक्षाटन करके अपना गुजर-बसर करता था. 

प्रारंभिक जीवन

इनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही कष्टमय तरीके स गुजरा इनका पाल-पोषण और शिक्षा-दीक्षा प्रसिद्ध संत बाबा नरहरिदास जी के देख-रेख में हुआ जहाँ इन्होने भक्ति और ज्ञान की शिक्षा ग्रहण की अपनी शिक्षा पूरी होने पर ये पुनः अपने गाँव राजापुर आ गए.

जहाँ इनका दीनबंधु पाठक की बेटी रत्नावली पाठक से हो गया, इनका अपनी पत्नी के प्रति अगाध प्रेम और स्नेह था ये उससे एक पल भी दूर नहीं रहना चाहते थे, एकबार इनकी पत्नी अपने मायके ( पिता के घर ) पे गयी हुई थी, और तुलसीदास जी को उनकी दूरी बर्दास्त नहीं हुई तो ये, उनसे मिलने इनके घर आधीरात को उफनाई हुई नदी को पार करके पहुच गए.

उनके इस बर्ताव से उनके ससुराल वाले बहुत दुखी हुए और इनकी पत्नी भी बहुत लज्जित हुई और क्रोधित होते हुए उन्होंने कहा – 

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सो ऐसी प्रीति|

नेकु जो होती राम से, तो कहे भव-भीत ||

उन्होंने कहा- इस हाड-मास के शरीर के प्रति आपकी इतनी आगाध श्रद्धा और प्रेम है अगर इसका आधा भी राम के प्रति होता तो भगवान आपको स्वयं दर्शन देते.

अपनी पत्नी के मुख से ऐसी तिरस्कार भरी बात सुनकर उनका मन खिन्न हो गया और उन्होंने उसी समय अपने गृहस्थ जीवन को त्याग कर भगवान के गुणगान में लग गए. और घूम घूमकर भगवान श्रीराम का गुणगान करने लगे. इनका सर्वाधिक समय अयोध्या, चित्रकूट और काशी में व्यतीत होने लगा.

गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मृत्यु के समय काशी चले आये और विक्रम संवत 1680 में इन्होने अपने जीवन को अस्सी घाट पर त्याग दिया और मोक्ष की प्राप्ति कर ली. इनके मृत्यु से सम्बंधित एक बहुत ही प्रचलित दोहा है – 

संवत सोलह सौ अस्सी, अस्सी गंग के तीर | 

श्रावण कृष्ण तृतीया, तुलसी तज्यो शरीर ||

तुलसीदास की साहित्यिक परिचय – 

गोस्वामी तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान विभूतियों में से एक है, ये भक्तिकाल के एक महान कवी और रचनाकर्ता थे, इन्होने समस्त मानव-जाति को प्रेमपूर्वक रहने और अपने जीवन को प्रभु श्रीराम के जीवन की तरह ढालने और उनके आदर्शों पर चलने का ज्ञान देते रहे.

तुलसीदास की रचनाये – 

गोस्वामी तुलसीदास जी ने कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की जिसमे उनका सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रसिद्ध ग्रन्थ रामचरित मानस है जिसने उन्हें बहुत ख्याति दिलाई उनके कुछ महत्वपूर्ण ग्रन्थ निम्न है –

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रामचरित मानस –

इस ग्रन्थ में गोस्वामी जी ने प्रभु श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन को पद्य के माध्यम से अवधी भाषा में लिखा है, उन्होंने इनके जीवन का इतना सटीक और मार्मिक वर्णन किया है की कोई भी इसे पढकर भाव-विभोर हो सकता है.

सियाराम मै सब जग जानि,

करउ प्रणाम जोरि जुग पानि  ||

विनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीत,

उठेउ राम सकोप तब भय बिनु होत न प्रीत  ||

जानकी मंगल –

इस ग्रन्थ में उन्होंने श्रीराम और सीता जी के मंगल विवाह का वर्णन किया है, ये भी श्रीरामचरित मानस की तरह ही है, और उसके शब्द भी मिलते-जुलते है. इसमें उन्होंने सीता स्वयंबर से लेकर अयोध्या वापसी तक का बड़ा ही सरस वर्णन किया है.

सुभ दिन रच्यो स्वयम्बर मंगलदायक |

सुनत श्रवन हिय बसहि से रघुनायक || १ ||

देस सुहावन पावन बीएड बखानिय |

भूमि तिलक सैम तिरहुति त्रिभुवन जानिय || २ ||

पार्वती-मंगल – 

इसमें गोस्वामी जी ने माता पार्वती जी के द्वारा भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए किये गये तप और अनेक प्रकार के कष्टों का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है. गोस्वामी जी ने माता पार्वती जी के तप्स्या का बहुत ही मार्मिक और सजीव वर्णन किया है.

विनय गुरहि गुनिगिनही गिरिह गननाथाहि |

ह्रदय आनी सिय राम धरे धनु भाथहि || १ ||

गावउ गौरि गिरिश विवाह सुहावन |

पाप नसावन पावन मुनि मन भवन || २ || 

इसके अतिरिक्त गोस्वामी जी के अन्य रचनाय जैसे – रामलला नहछू, रामाज्ञा प्रश्न , बरवै रामायण, वैराग्य संदीपनी, कृष्ण दोहावली, विनय-पत्रिका कवितावली, गीतावली आदि | 

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