Electoral Bonds क्या है ?
Electoral Bonds बीते दिनों आप सभी ने कही न कही किसी माध्यम से इसके बारे में जरुर सुना होगा, आज आपको हम इसी बारे में पुरे विस्तार रूप से बताएँगे तो चलिए शुरू करते है. आप सभी जानते है की जितनी भी राजनैतिक पार्टियां है उनको कसी व्यक्ति या कंपनी या फिर किसी भी माध्यम से चंदा दिया जाता है जिससे वह पार्टियाँ उसे चुनावी चंदे के रूप में खर्च करती है, 2017 से पहले चुनावी चंदे के रूप में कैश का प्रयोग ज्यादा होता था, कहने का मतलब है की कोई भी व्यक्ति या कंपनी या संस्था अपने पैसों को पार्टी फंड में जमा करती थी जो की कैश के माध्यम से जमा होता था, जिससे कैश पैसे की खपत बहुत ज्यादा हो जाती थी.
इसी के उपाय के रूप में तत्कालीन मोदी सरकार ने डिजिटल इण्डिया को बढ़ावा देने के लिए electoral bond का प्रयोग 2017 में शुरू किया गया जिसके तहत इस bond को जारी करने की अनुमति स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया को दिया गया जहाँ पर एक बांड के रूप में एक बैंक के कागज पर जितना रुपया देना होता है उतना लिखा जाता है ( यह एक डिमांड ड्राफ्ट की तरह ) और वह व्यक्ति,संस्था या कंपनी उस bond को जिस भी पार्टी को दे देता था और वह पार्टी उसे बैंक से कैश करा लेती थी, इसकी सबसे बड़ी बात ये थी की इस Electoral Bond में किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं होता था और न ही किसी पार्टी को देना है उसका नाम. आप bond बनवा कर जिस भी पार्टी को देते वो उसका हो जाता था. इसमें सिर्फ बैंक को पता रहता था की किस व्यक्ति ने किस फलां पार्टी को वो बांड दिया है? एक साल में 4 बार ही इसको खोला जाता था और 3-3 महीने के अंतराल बाद 10-10 दिन के लिया यानी की साल में कुल 40 दिन तक खोला जाता था |
Electoral Bonds खोलने का समय क्या होता था ?
1 – 10 जनवरी | 1 – 10 अप्रैल – | 1 – 10 जुलाई | 1 – 10 अक्टूबर |
Electoral Bonds खोलने की धनराशी कितनी होती है ?
और इस बांड की शुरुवात 1000, 10000, 100000, 10000000 ( एक हजार, दस हजार, एक लाख, एक करोड़ ) तक ही होती थी अब मान लीजिये की किसी को 2 करोड़ देना है तो वो एक करोड़ वाला डॉ बांड खरीद कर अपने विचारधार वाली पार्टी को दे देता था. यह पैसा पार्टी को बांड बनवाने के 15 दिन के अंदर सम्बंधित पार्टी को दे दिया जाता था अन्यथा यह पैसा PM Care Fund में चला जाता था |
Electoral Bond से होने वाले नुकसान जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की ?
एक तरफ कहने को तो इसकी शुरुवात भ्रष्टाचार मिटाने और काला धन रोकने के लिए किया गया था, लेकिन समय के साथ कब इसका दुरूपयोग हो गया पता ही नहीं चला, इसकी सबसे बड़ी कमी यही थी की जिसने भी चंदा दिया कितना दिया और कब दिया इसकी जानकारी सिर्फ उस व्यक्ति को पता होती थी या फिर बैंक को पता रहता था और कोई भी व्यक्ति,संस्था या कंपनी जितना चाहे उतना चंदे के रूप में दे सकती है जिस पर कोई टैक्स भी नहीं लगता है. इसी की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए इस पर रोक लगा दी और 12 मार्च तक सारा डाटा इलेक्शन कमीशन के पास भेजने को कहा और इलेक्शन कमीशन को भी निर्देश देते हुए यह कहा की इसकी पूरी जानकारी 15 मार्च तक सार्वजनिक की जाए जिसका पूरा इलेक्शन कमीशन के पब्लिक पोर्टल पर उपलब्ध कराया जाय.
यहाँ देखें Electoral Bond की पूरी कहानी ?
आइये आप सभी को बताते है की electoral bond के विषय में कब-कब क्या हुआ ?
- वर्ष 2017 में वित्त विधेयक में Electoral Bond योजना पेश की गई।
- 14 सितंबर, 2017 को मुख्य याचिकाकर्ता एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने योजना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था |
- 3 अक्टूबर, 2017 को SC ने एनजीओ द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र और EC को नोटिस जारी किया था |
- 2 जनवरी, 2018 में केंद्र सरकार ने Electoral Bondयोजना को अधिसूचित किया था।
- 7 नवंबर, 2022 को एक वर्ष में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 करने के लिए Electoral Bond योजना में संशोधन किया गया था |
- 16 अक्टूबर, 2023 को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एससी बेंच ने योजना के खिलाफ याचिकाओं को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेजा था।
- 31 अक्टूबर, 2023 को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने योजना के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की था।
- 2 नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखाथा |
- 15 फरवरी, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को रद्द करते हुए सर्वसम्मति से फैसला सुनाया और कहा कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के साथ-साथ सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है था |
- 4 मार्च को भारतीय स्टेट बैंक ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए प्रत्येक Electoral Bondके विवरण का खुलासा करने के लिए 30 जून तक समय बढ़ाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था |
- 7 मार्च को एसबीआई के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने 6 मार्च तक Electoral Bondके माध्यम से राजनीतिक दलों को किए गए योगदान का विवरण प्रस्तुत करने के शीर्ष अदालत के निर्देश की जानबूझकर अवज्ञा की था |
- 11 मार्च यानी आज उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समय बढ़ाने की मांग करने वाली एसबीआई की याचिका खारिज कर दी और उसे 12 मार्च को कामकाजी समय समाप्त होने तक चुनाव आयोग को Electoral Bondका विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था |
अब देखना है की स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) इस पर क्या एक्शन लेती है, इससे एक बात तो साफ़ है की इस देश में जनता के पैसों का दुरूपयोग सभी पार्टियाँ करती आ रही है, अब आने वाला समय बताएगा की कितना चंदा किस पार्टी को मिला है |
मिशन गगनयान जानने के लिए क्लिक करें…………